________________
१५४ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
एक रात्रि को कुछ चोर इस राजा के अस्तवल मे घुस आये। सवसे पहले उनकी नजर अविनीत पर पड़ी और उनका जी ललचाने लगा। ऊंची कनोती का यह अश्व था भी ऐसा ही । अतः चोरो ने अविनीत को खूटे से खोला और रस्सी थाम कर चल दिये। अविनीत ने प्रारम्भ मे तो कुछ आनाकानी की कुछ आगे-पीछे हुआ, किन्तु जव चोरो ने आपसी वार्तालाप मे इस अश्व की सुन्दरता, सुडौलता, सवलता आदि के लिए खूब प्रशसा की तो वह रीज्ञ गया और सरलता से उनके साथ चल पडा । ये चोर बहुत दूर के थे, जहां वे अविनीत को ले जाना चाहते थे और सब की दृष्टि से वचाकर ले जाना भी उनके लिए आवश्यक था । अत वे अश्व को ऊबड़-खाबड वन मार्ग से ले जाने लगे। ऐसे कुमार्ग को ग्रहण कर लेना भी उसके लिए सकोच की बात नही थी । वह तनिक भी नहीं हिचकिचाया और चल पड़ा-ऊँचे-नीचे पथरीले रास्ते पर । विनीत उद्दण्ड अवश्य था और ऐसा शरारती भी कि अपने सवार पर क्या बीतेगी-इसकी भी चिन्ता नही किया करता, किन्तु वह सीधे राजमार्गों पर ही चला करता था, इस यात्रा मे ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर चलना उसके लिए इसी कारण असुविधाजनक हो रहा था। उसे अत्यधिक कष्ट भी हुआ और सह वेहद थक भी गया था । चोर उसे खीचे चले जा रहे थे और वह पीछे-पीछे घिसटता जा रहा था। वेहद थकान, भूख-प्यास और कुमार्ग के कष्ट को वह अधिक सहन नहीं कर पाया। परिणाम यह हुआ कि शिथिल होकर अविनीत मार्ग की चट्टानो पर ही गिर पडा । तेज धूप मे वह तडपने लगा। चोर अश्व की