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विनीत-अविनीत अश्वो की कथा | १५५
प्राण-रक्षा के लिए इधर-उधर जल की खोज मे भागे, किन्तु दुर्भाग्य था अविनीत का कि कही भी आस-पास जल नही मिला। अन्ततः अविनीत का देहान्त ही हो गया। इस सुन्दर अश्व को खोकर चोर बडे निराश और दुखी हुए। वे बिना अच्छा अश्व लिए लौटना नही चाहते थे। अत वे मार्ग से ही पलट गये और फिर से इसी राजा की अश्वशाला मे पहुँच गये ।
इस रात्रि मे विनीत को देखकर चोरो का मन ललचाया । वे उसे चुरा कर ले जाने लगे। विनीत ने भी अश्वशाला से इनके साथ बाहर नही निकलने की खूब कोशिश की, किन्तु वह बेचारा विवश था। चोर रस्सी को खीचकर किसी प्रकार उसे बाहर ले ही आये । पशु ही तो था वह, जिधर उसे घेरा जाने लगा उधर ही वह चलने लगा। चोर इस अश्व को भी उसी मार्ग से ले जाना चाहते थे । जब कुछ चल चुकने पर विकट और ऊँचा-नीचा रास्ता आया तो विनीत ठिठक कर खडा हो गया । वह कुमार्ग पर चरण बढाने का अभ्यस्त न था । चोरो ने पुचकार कर उसे आगे बढाना चाहा पर वह न हिला । खूब खीचा गया और वह तो जैसे स्तम्भ की भाँति ही गड गया । बहुतेरा प्रयत्न किया किया, किन्तु वह अश्व तनिक भी आगे नहीं बढा । कुमार्ग पर बढने का वह विरोध ही करता रहा । अभी चोर अश्व को लेकर नगर से अधिक दूर नहीं जा पाये थे और इधर प्रात होने को आया । अत पकडे जाने के भय के कारण विनीत को वही छोड कर सभी चोर भाग खड़े हुए।
अविनीत के चुरा लिए जाने पर राजा को अधिक शोक नहीं