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विनीत-अविनीत अश्चों की कथा | १५७
नभसेना । इस प्रकार प्रलोभनो, बहकावो और मिथ्या प्रशसा के फेर मे पडकर व्यक्ति की अविनीत अश्व की भांति ही दुर्दशा हो जाती है । और जो प्रत्येक परिस्थिति का साहस और दृढता के साथ सामना करता है, किन्तु उपयुक्त मार्ग का कभी परित्याग नही करता-उस सुमार्गी को अपने लक्ष्य में सफलता, जगत मे सम्मान और परलोक मे सद्गति अवश्य ही प्राप्त हो जाती है । मैं इस कथा के आदर्श को अपने जीवन मे ढाल चुका हूँ । अविनीत की भाँति कुमार्गी मैं नहीं बन सकता । सन्मार्ग के प्रति दृढ़ता का भाव मैंने विनीत से सीख लिया है। मुझे साधना के पथ से च्युत कर पुनः लौकिक विषयो मे लिप्त हो जाने के लिए कोई भी तत्पर नही कर सकता और न ही किसी को इस प्रकार का प्रयत्न करना चाहिए । इस जगत् के प्रत्येक मनुष्य को विनीत से शिक्षा लेनी चाहिए। सभी को सुमार्गी होकर मानव-जीवन सार्थक कर लेना चाहिए । यह कहकर जम्बूकुमार मौन और गम्भीर हो गये।
कुमार की वाणी का नमसेना पर गहरा प्रभाव हुआ । वह भी सासारिक सुखो को व्यर्थ मानने लगी, त्याज्य मानने लगी । अपने व्रत के प्रति कुमार की दृढता देख कर उनके प्रति नभसेना के मन मे श्रद्धा उमड आयी। नतमस्तक होकर उसने कुमार के दृष्टिकोण मे ही सत्य स्वीकार कर लिया और पराजित होकर भी वह गौरव का अनुभव करने लगी।