________________
६ सिद्धि और बुद्धि की कथा नभ सेनाका प्रयत्न
पद्मश्री, पद्मसेना, समुद्रश्री और कनकसेना अब तक जम्बूकुमार को विरक्ति के पथ से च्युत करने के लिए अतुलित आत्मविश्वास और सामर्थ्य के साथ प्रयत्न कर चुकी थी और उन्हे अपने प्रयोजन मे सफलता प्राप्त नही हो सकी थी। जम्बूकुमार की इन चार पत्नियो का पराभव भी शेष के लिए प्रतिकूल प्रभाव की रचना नहीं कर पाया था । अन्य पत्नियो मे इस पराजय का एक-एक चरण अधिकाधिक उत्साह भरता जा रहा था । इनमे से प्रत्येक ललना स्वय को अन्यो की अपेक्षा अधिकतम क्षमतायुक्त मानती थी और यह विश्वास रखती थी कि मेरे माध्यम से ही यह प्रयोजन सिद्ध हो पायगा । अत किसी के लिए हताश होने का आधार नही था । कनकसेना के हृदय परिवर्तन पर नभसेना क्षोभ से भर उठी । इस तर्क- युद्ध मे अब नभसेना आगे आई और कुमार से कहने लगी कि हे प्रिय स्वामी । इतना तो आप स्वीकार करते ही होगे कि जो हमारी वर्तमान स्थिति है वह पूर्व सस्कारो का ही प्रतिफल है । पूर्वजन्म मे हमारे कर्म जिस प्रकार के रहे है उसके अनुरूप ही सुख-दुख की प्राप्ति हमे इस जन्म मे हो रही हैं । निश्चय ही विगत जीवन मे आपने कोई महान शुभ कार्य किये हैं, जिनके परिणामस्वरूप