Book Title: Mukti ka Amar Rahi Jambukumar
Author(s): Rajendramuni, Lakshman Bhatnagar
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 157
________________ सिद्धि और बुद्धि की कथा | १४५ जम्बूकुमार पर दिखाई दिया । वे जिज्ञासा भाव से एकटक नभसेना के मुख की ओर निहार रहे थे और उनका सारा ध्यान उसके कथन पर केन्द्रित था । इससे उत्साहित होती हुई नमसेना ने यह कहते हुए कथा प्रारम्भ की कि लीजिए स्वामी ! आज मैं ही आपको सिद्धि और बुद्धि की कथा से अवगत करा देती हूँ। एक समय एक ग्राम मे दो स्त्रियां रहती थी, जिनमे से एक का नाम था सिद्धि और अन्य का नाम था बुद्धि। ये दोनो ही अतिशय दरिद्र थी और कष्टमय जीवन व्यतीत कर रही थी। जीवन की इस कठोरता ने इन दोनो को सहेलियाँ बना दिया था। ये दोनो वन-वन भटक कर गोबर एकत्रित करती और गांव से बाहर उपले थापती। इन कण्डो को बेचने से जो कुछ प्राप्ति होती थी-उससे वे अपना भरण-पोषण कर लिया करती थी। साधनहीनता और असहायता की इस विषम परिस्थिति ने इन दोनो के मन मे असन्तोष और लोभ की दुष्प्रवृत्ति को बलवती बना दिया था । वे अधिकाधिक प्राप्ति की आकाक्षा रखती और सदा यही सोचा करती कि हमारे जीवन मे सुख कब आयेगा । सयोग से एक दिन बुद्धि को एक महात्मा के दर्शनो का सौभाग्य हुआ। उस समय वह बेचारी कण्डे थाप रही थी। उसकी दीन-हीन और दुर्बल दशा पर महात्मा को दया आयी । बुद्धि ने अत्यन्त नम्रता और श्रद्धा की भावना के साथ महात्मा के चरण-स्पर्श किये थे । महात्मा इस स्त्री की सप्रवृत्ति से तो पहले ही प्रभावित हो चुके थे और जब उसने अपनी दुःखगाथा सुनाई, तो महात्मा के मन मे बुद्धि की सहायता करने की

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