________________
क्षेत्रकुटुम्बी किसान की कथा | १३१
भीत हो गये । उन्हें यह अनुमान लगाने मे विलम्ब नही हुआ कि गाँव वालों को ज्ञात हो गया है और उनका समूह शंख बजाता हुआ हमारा पीछा कर रहा है । अत आत्म-रक्षा के लिए सारे पशुओ और चोरी के धन को वही छोड़ चोर भाग खड़े हुए। इस प्रकार बड़ी भगदड मच गयी। पशु भी चीखने-चिल्लाने लगे और
रात्रि के उस शान्त वातावरण मे क्षेत्रकुटुम्बी को ये असामान्य ध्वनियां सोचने के लिए विवश करने लगी कि आखिर माजरा क्या है ? इतने दूर से वह कुछ अनुमान नही लगा पा रहा था और उसकी उत्सुकता भी बढती जा रही थी । अत. निर्भीक क्षेत्रकुटुम्बी उस दिशा मे बढा, जिधर से यह कोलाहल सुनाई दे रहा था । अविलम्व ही वह घटनास्थल पर पहुँच गया । उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा - यह देखकर कि वहाँ तो अपार धन पड़ा हुआ है और अनेक गाये, भैसे आदि पशु खड़े है । उसे सही स्थिति का अनुमान लगाने मे भी कोई देरी नही लगी कि यह सब कुछ चोर ही छोड़कर भाग गये है । वह चतुर तो था ही, अत यह निश्चय भी उसने तुरन्त ही कर लिया कि इस सब पर मुझे तुरन्त अधिकार कर लेना चाहिए। वैसे भी इसे छोड़ना व्यर्थ है - यह सोचकर वह समस्त धन और पशुओ को रात मे ही घर ले आया । तन तक सारा गाँव तो गाढी नीद मे सो रहा था और इधर क्षेत्रकुटुम्बी का भाग्य ही जाग उठा था । उसमे अनेक सद्गुण तो थे, किन्तु यह लोभ का दुर्गुण बडा प्रबल था, जिसके वशीभूत होकर ही इस सारी सम्पत्ति पर अधिकार कर लेने मे उसे तनिक भी अनौचित्य प्रतीत नही हुआ था । वह तो
1