________________
८. प्यासे बन्दर की कथा
कनकसेना का जम्बूकुमार द्वारा हृदय-परिवर्तन
कनकसेना को क्षेत्रकूटम्बी किसान की कथा सुनाने के पश्चात् जिस सन्तोप को अनुभूति होने लगी थी-वह अव जम्बूकुमार की वाणी की धारा में प्रवाहित होने लगी । जम्बूकुमार अत्यन्त सधे हुए स्वर में कहने लगे कि कनकसेना | सुनो, तुमने मेरे विषय मे जो धारणा बना रखी है वह आधारहीन है । तुम कहती हो कि जो सुख मेरे जीवन में उपलब्ध हैं, उन्ही पर मुझे सन्ताप धारण करना चाहिए और उन्नति के चरम पर पहुंचन की उतावली मुझे नही करनी चाहिए। इन सुखो का मुझे परित्याग नही करना चाहिए. . . आदि-आदि । किन्तु यथार्थ तो यह है कि जिन्हे तुम सुख बता रही हो वे मेरे लिए सुख है ही नहीं । ये विषय असार है, अस्थिर है और घोर दुःख के जनक है । भ्रमवश हम इन्हे आनन्द का कोष मानते हैं, किन्तु क्षण मात्र के लिए ये रस का केवल आभास करा पाते है, बस । अन्यथा इनके कारण जो दारुण कप्टो की स्थिति उत्पन्न होती है, वह अनन्त होती है। यह सव कुछ मैंने ज्ञान कर लिया है। तुम्हारे इन सुखो के भीतर मैंने झांक कर देख लिया है और मैंने वहाँ घोर हाहाकार, दारण चीत्कार तथा आहो और आँसुओ का व्यापार ही होते पाया है। अब ऐसी स्थिति मे उन त्यक्त सुखो की ओर