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१३४ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूफुमार
गये थे-तब भी सम्भव है किसी ने हमे ठग लिया हो। अब चोरो ने खोज प्रारम्भ कर दी कि शख कौन वजा रहा है। कुछ ही समय में उन्हे इस रहस्य का पता चल गया और उन्होने इस किसान को शख बजाते देख लिया । चोरो के मन मे प्रतिशोध की अग्नि धधक उठी। दुष्ट मनोवृत्ति के तो वे थे ही। क्षेत्र कुटुम्बी को उन्होने नाना प्रकार से अपमानित किया और उसे निरादरपूर्वक घसीटते हुए अपने गांव ले आये। चोर चाहते थे कि उनके जिस धन और पशुओ पर किसान ने अधिकार जमा रखा है, यह उन्हे लौटा दे किन्तु उसके मन मे तो लोभ समाया हुआ था। वह सीधे-सीधे कैसे तत्पर हो जाता | उसे एक स्तम्भ से जकड़ कर बाँध दिया गया। चोरो ने उसे नाना भांति के शारीरिक कष्ट दिए । घोर यन्त्रणाओ को भी वह सहन कर गया, किन्तु वह सम्पत्ति लौटाने को राजी नहीं हुआ। लोभ क्या कुछ नही करा देता है । अन्त मे जब क्षेत्रकुटुम्बी को इस बात का विश्वास हो गया कि विना धन लोटाये अब मेरे प्राणो की रक्षा नही होगी, तो वह विचलित हो गया। प्राणो का लोभ कदाचित् सर्वाधिक सशक्त होता है, जो अन्य सभी प्रकार के लोभो को निरस्त कर देता है। क्षेत्रकुटुम्बी भी विवशत सब कुछ इन चोरो को लौटा देने की तत्पर हो गया ।
और अब कल का प्रतिष्ठित क्षेत्रकुटुम्बी आज दीन-हीन और रक किसान हो गया। पहले की स्थिति से भी अब वह बहुत नीचे हो गया था । जो मिथ्या शान और मान उसे उस चोरी के धन के साथ मिला था-वह उसी के साथ चला भी