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१३० मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
किसान था, तथापि कृषि उपज उसकी आवश्यकताओ को देखते हुए पर्याप्त हो जाती थी। अत वह निश्चिन्त और सुखी था । परिश्रम से जी चुराना उसने सीखा ही नही था । दिन भर कठोर । प्ररिश्रम करता और इस परिश्रम मे भी वह आनन्द का अनुभव किया करता था। खेती-बाडी के सारे काम-काज वह स्वय ही करता था । किमी दूसरे पर आश्रित रहना उसे नहीं भाता था । गत को खेतो की रखवाली का कार्य भी वह स्वय ही किया करता था। बडा मनमौजी जीव था वह । बस अपने काम मे ही उसका ध्यान रहा करता था ।
खेतो मे बालियाँ पकने लगी थी। परिश्रम के फल की प्राप्ति समीप ही थी। ऐसे समय मे अधिक सावधानी की आवश्यकता हुआ करती है। क्षेत्रकुटुम्वी इससे अनभिज्ञ न था, अत रात भर जागकर वह फसल की रखवाली किया करता था । पशुपक्षियो से अनाज को बचाना वह खूब जानता था। रातभर वह थोडे-थोड़े समय के अन्तराल से शख वजाता रहता था। पशु-पक्षी चौंके रहते और उसकी फसल की हानि नही होती। एक रात को उसके शख-निनाद का बड़ा अनोखा ही प्रभाव हो गया । वह किसान क्या से क्या हो गया ।
हुआ ऐसा कि आस-पास के गांवो से कुछ चोर अपार धन और पशुओ को चुरा कर ला रहे थे । अर्द्धरात्रि के समय जब वे इसके खेत से कुछ दूरी पर होकर निकल रहे थे तो उन्होने उसके द्वारा की जाने वाली वार-बार की वह शख-ध्वनि सुनी। चोर भय