________________
पूर्वभव एवं देहधारण | १५
उन्होने इन विद्वानो का आभार स्वीकार किया और विपुल द्रव्यादि दक्षिणास्वरूप अर्पित कर उन पडितो को सादर विदा किया ।
देह धारण ब्रह्मलोक से च्युत होकर विद्युन्माली देव का जीव धारिणी देवी के गर्भ मे स्थित हुआ और समय-यापन के साथ-साथ गर्भ स्वाभाविक रूप में विकसित होता रहा । गर्भस्थ प्राणी के प्रभाव स्वरूप धारिणी की रुचियो और प्रवृत्तियो मे अद्भुत परिवर्तन हो गया । उसकी देह की कान्ति में तो अभिवृद्धि हुई ही, धर्मरुचि भी विकसित होने लगी थी । दीन-दुखियो के प्रति सद्भावना और मेवा-सहायता का भाव उसके मन मे प्रबल हो गया और वह तन-मन-धन से उनकी सेवा करने लगी। वह सद्विचारो मे लीन रहने लगी और आचरण-शुचिता का प्रतिक्षण वह ध्यान रखने लगी । ऋषभदत्त भी धर्म-कर्म मे अधिक रुचिशील हो गया और वह मुक्तहस्त से दानादि पुण्य कार्यों में प्रवृत्त हो गया।
धारिणीदेवी ने यथासमय अत्यन्त तेजवान पुत्र को जन्म दिया । कणिकार की मधुर मौरभ से युक्त नवजात शिशु की देह मे अद्भुत कान्ति थी। कुन्दनवर्णी इस बालक मे समस्त दैहिक शुभ लक्षण थे । बालरवि-सा उसका मुखमण्डल प्रताप-पुज लगता था। पुत्र-रत्न की प्राप्ति का शुभ सवाद पाकर पिता ऋषभदत्त की प्रसन्नता का तो पारावार ही नही रहा। सारे प्रासाद मे अपूर्व हर्ष का ज्वार उभर आया था । श्रेष्ठि को बधाइयाँ देने को सभी वर्ग के जन आने लगे। सभी को उचित उपहार-भेट आदि से