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बंग किसान की कथा | ६५
एक समय का प्रसग है कि बग अपने श्वसुरालय गया हुआ था । उसने इस क्षेत्र मे भाँति-भांति की फसलो को लहलहाते देखा और उसका मन प्रफुल्लता से भर उठा। उसने कई कृषि क्षेत्रो मे एक विशेष फसल देखी । बाँस जैसी लम्बी-लम्बी छड़ियाँ लम्बी-लम्बी पत्तियो से शोभित थी। उसने यह भी देखा कि इन छड़ियो को कोल्हू मे पेर कर उनका रस निकाला जा रहा है और उस रस को बड़े-बड़े कड़ाहो मे उबाला जा रहा है । चारो ओर एक मादक, मीठी गन्ध उड़ रही थी। जब बग अपने श्वसुर के खेत पर पहुंचा तो उसे वहाँ भी यही दृश्य देखने को मिला। उसके साले ने उसे वह मीठा रस पिलाया-वग बड़ा प्रसन्न हुआ। मीठा, ताजा, गुड़ खाकर उसे विशेष आनन्द का अनुभव हुआ। उसका मन लालायित हो उठा कि वह अपने खेतो मे भी यह फसल बोए । फिर तो वह सर्वदा ही इस सुख की प्राप्ति करता रह सकेगा । वह कुछ समय तक तो सकोच से ग्रस्त रहा कि इस फसल के विषय मे पूछ-ताछ करने पर उसे अपनी अल्पज्ञता के कारण उपहास का पात्र बनना पड़ेगा, किन्तु अपनी उत्कट आकाक्षा का दमन भी वह कब तक करता । अन्तत. उपयुक्त अवसर पाकर उसने अपने साले से सब कुछ ज्ञात कर लिया। उसे बताया गया कि यह ईख है और इसकी गाँठो मे ही इसके बीज निहित रहते हैं । इसी के रस से गुड, चीनी आदि को निर्माण होता है जो समस्त मिष्ट व्यजनो के लिए आधार है। इस जिज्ञासा-तृप्ति ने उसके मन मे बसी ईख की खेती करने की अभिलाषा को और अधिक बलवती बना दिया। निदान वह