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बग किसान की कथा | EE
नही जा सकता था, उसका दण्ड अनिवार्य हो उठा था । वग का मन अपनी भूल पर हा-हाकार करने लगा।
उपर्युक्त कथा समाप्त करते-करते समुद्रश्री विजय के गर्व से भर उठी । उसकी उन्नत ग्रीवा इसकी साक्षी थी। उसका अनुमान था कि उसने जम्बूकुमार को निस्तेज कर दिया है और उसे अब अवश्य ही जम्बूकुमार को उसके निश्चय से च्युत कर देने का श्रेय प्राप्त हो जायगा । कुछ ही क्षणो मे जम्बूकुमार ने अपना मौन त्यागते हुए समुद्रश्री से कहा कि प्रिये । वड़ी सुन्दर कथा तुमने सुनाई । अब तनिक यह भी स्पष्ट कर दो कि इस कथा के माध्यम से तुम किस तथ्य को प्रतिपादित करना चाहती हो? तुम्हारा प्रयोजन क्या है ?
समुद्रश्री फिर से नवीन उल्लास के साथ बोली कि स्वामी ! जो व्यक्ति भावी सुखो की कल्पना मे इतना खो जाता है कि इस का निर्णय भी न कर पाए कि उस सुख को प्राप्त करने के लिए जिस प्रयत्न की आवश्यकता है, उसकी क्षमता भी उसमे है अथवा नही- वह उस नवीन सुख के लिए विद्यमान और सहज सुलभ सुखो को त्याग कर पछताता है । उसके उपलब्ध सुख भी छूट जाते है और अक्षमता के कारण उसकी कल्पना के सुखो की असम्भवता तो बनी ही रहती है। वह कही का नही रह जाता। अत हे स्वामी ! आपको भी बग के पछतावे से सीख लेनी चाहिए और अनिश्चित भावी सुखो के लिए उपलब्ध मुखो का परित्याग नही करना चाहिए । भ्रान्तियो के चक्रव्यूह से स्वय को मुक्त कीजिए और अपना तथा हमारा जीवन सुखमय कीजिए । इसी मे आपकी विवेकशीलता प्रमाणित हो सकेगी।