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मेघमाली और विद्युत्माली की कथा | १२१
के लक्ष्य से नही हो सकती। अत साध्य की पवित्रता साधना और साधनो की पवित्रता की द्योतक होती है और साधक का स्वरूप इसके विपरीत हो ही नही सकता। साथ ही लक्ष्य-प्राप्ति पर साधक को वे ही परिणाम मिलेंगे जो उस लक्ष्य से सम्भव है। अतः पद्मसेना तुम मेरे लिए व्यर्थ ही चिन्तित हो । मेरे अमगल की रचमात्र भी आशका तुम्हारे मन मे नही रहनी चाहिए ।
फिर सोचने का प्रसंग यह भी है, कुमार ने कोमलता के साथ पद्मसेना को सम्बोधित करते हुए कहा कि वह रानी कपिला के मन की कपट भावना ही थी, जिसने उसे दुःख, वेदना, असहायता आदि के अभिशापो से ग्रस्त कर दिया था। उसने धोखा दियापहले अपने पति राजा को फिर आपने प्रेमी महावत को किन्तु मेरे नवीन मार्ग मे ऐसी सदोषता है ही कहाँ । मैं किसी के साथ कोई छल-कपट नही कर रहा हूँ। इसी कारण पद्मसेना-मैं कहता हूँ कि कपिला की भाँति अन्त मे मै भी पछताता रह जाऊँगाऐसी मूलहीन कल्पना करना अनुचित है।
जम्बूकुमार ने पद्मसेना के मुख पर अकित भावो का क्षण मात्र मे ही अध्ययन कर लिया और पाया कि उसके मन मे उसका पूर्व-विचार ज्यो का त्यो है । अत कुमार ने पद्मसेना से कहा कि प्रिये ! तुम्हारा यह भ्रमपूर्ण विचार इसलिए पक्का हो गया है कि तुमने कदाचित् मेघमाली और विद्युत्माली का वह प्रसग नहीं सुना जिससे सयम का महात्म्य स्पष्ट हो जाता है। इस प्रसग से अनभिज्ञ पद्मसेना के मन मे जिज्ञासा का भाव जाग्रत हुआ और उसने यह कथा सुनने की इच्छा व्यक्त की।