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१२२ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
जम्बूकुमार ने कथारम्भ करते हुए कहा कि पद्मसेना ! कुण्ट नगर का नाम तो तुमने सुना ही होगा । एक समय इसी नगर मे मेघमाली और विद्युत्माली निवास करते थे । ये दोनो भाई थे और इनका जीवन अत्यन्त कष्टमय था । वंश परम्परा से ही ये ब्राह्मण-बन्धु दारिद्र्य के अभिशाप से ग्रस्त थे । भिक्षोपजीवी मेघमाली एव विद्युत्माली वडी कठिनाई से उदर-पूर्ति कर पाते थे । इनके पिता से इन्हे वसीयत मे कुछ मिला नही था और विद्यार्जन भी वे नही कर पाये थे । कुष्टनगर और समीपस्थ ग्रामो मे ये दोनो बन्धु भिक्षाटन करते और जो कुछ भी भिक्षान्न प्राप्त हो जाता, उसी पर उन्हे सन्तोप करना पडता था । इनकी अपोपित काया भी दुर्बल थी और मुख भी निस्तेज ।
जम्बूकुमार ने इन ब्राह्मणो का परिचय इस प्रकार देते हुए प्रसग को अग्रसर किया कि कहा जाता है कि इन दुखित जनो पर एक दिन एक विद्याधर को दया आ गयी और उनकी सहायता तो दोनो को मिली, किन्तु एक तो लाभान्वित हो सका और दूसरा लाभ से वंचित रह गया । इसका कारण यह था कि एक सयम - निर्वाह मे दृढ था और दूसरा भाई असयमी था, उसकी दरिद्रता के कप्ट ज्यो के त्यो बने रहे । सुनो पद्मसेना ! हुआ यह था कि एक बार ये दोनो भिक्षाटन पर निकले थे । ग्रीष्म काल था और विद्युत्माली व मेघमाली निराहार भटकते-भकटते थक गये थे । ये दोनो निराश होकर एक सघन वृक्ष की शीतल छाया विश्राम करने लगे ।
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