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६ : मेघमाली और विद्युत्माली की कथा :
जम्बूकुमार का प्रबोधन
पद्मसेना के मुख से रानी कपिला की कथा को कुमार बड़े ध्यान से, गम्भीरता के साथ सुन रहे थे । अतः पद्मसेना के मन मे विजय के विश्वास और उल्लास का होना स्वाभाविक ही था । वह कदाचित् इसी कारण प्रफुल्लित दिखायी दे रही थी। किन्तु उसकी भावना को आघात तब पहुंचा, जव कथा के समाप्त होते-होते जम्बूकुमार तनिक व्यग्य के साथ मुस्करा दिये । कुमार ने कपिला रानी की कथा के विषय मे अपने दृष्टिकोण को व्यक्त करते हुए कहा कि प्रिये । यह जो कथा तुमने कही वास्तव मे बड़ी पीडाजनक है। बेचारी असहाय कपिला सहानुभूति की पात्र है। उसकी अन्तत हुई जिम दुर्दशा का, प्रिये । तुमने वर्णन किया--- उनका कारण यही नही था कि उसके मन मे सदा-सर्वदा नवनवीन यो प्राप्त करने की लालसा रहती थी। इसके कारण उसके चरित्र का पतन तो हुआ, किन्तु महत्वाकाक्षाओ और लालसामो का मदेव यही परिणाम रहता है. यह विचार भी भ्रामक है। पवित्र लालमाओ के मगलकारी परिणाम होते है और दूषित लालमामओ पतन होता है, दु.ख उत्पन्न होता है । कुमार ने और अधिक नयत होकर कहा कि पद्मसेना ! मैं जिस चिर और वास्तविम मुग-प्राप्ति का अभिलापी है, उम लक्ष्य की समानता कपिला