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मेघमाली और विद्य तमाली की कथा | १२७
कारण अनुताप भी होने लगा कि क्यो व्यर्थ ही मैने ऐसे शुभ कार्य से कुमार को विरत करने की चेष्टा की । पञसेना को स्वय अपना विचार मिथ्या लगने लगा था, उसका अब तक का विश्वास अब उसे भ्रम लगने लगा । वह विराग और सयम के महत्व को समझ गयी। उसने स्पष्ट शब्दो मे कुमार को धारणा का औचित्य स्वीकार किया और नतमस्तक हो गयी।
पद्मसेना स्वय भी कुमार का अनुसरण करने मे ही जीवन की सफलता अनुभव करने लगी। इस भाव ने कुमार की धारणा के प्रति उसके समर्थन को और अधिक सघन कर दिया, अगाध कर दिया।