________________
मेघमाली और विद्य तमाली की कथा | १२५ मार्ग पर बीच ही मे भटक गया था। इसके विपरीत मेघमाली पूर्णत सयम से रहा । निर्वाध रूप से उसने जाप-अवधि पूरी कर ली । उसे मन्त्र सिद्ध हो गया । परिणामत वह अपार बुद्धि-राशि का स्वामी हो गया। उसकी विद्वत्ता का प्रभाव और यश दूर-दूर तक व्याप्त हो गया था । चाण्डाल-पुत्री के साथ उसने मात्र विवाह ही किया था, फलत उसके ब्राह्मणत्व को भी कोई ठेस नही पहुँची । यही नही उसकी गरिमा एव महिमा मे अभिवृद्धि ही हुई। उसके गुणो से प्रभावित होकर कुष्टनगर के राजा ने उससे अपनी राजसभा की श्रीवृद्धि की । सर्वत्र उसका सम्मान होने लगा और अपार सुख-प्रतिष्ठा के इस नये वातावरण मे उसका अतीत दैन्य उसे एक भूली हुई कहानी जैसा लगने लगा । नरेश मेघमाली की प्रतिभा और योग्यता से इतना प्रसन्न हुआ कि अपनी राजकुमारी का विवाह भी उसके साथ कर दिया। मेघमाली के दिन फिर गये थे। उसके जीवन मे अब सुख ही सुख था। और पद्मसेना ! तुम समझ सकती हो कि सयम का ही यह सारा चमत्कार था । इसी संयम के अभाव मे विद्युत्माली को यह उन्नत स्थिति और सुखमयता उपलब्ध नहीं हो पायी । यही नहीं उसकी स्थिति और भी बिगड गयी थी। चाण्डालिनी के साथ ससर्ग के कारण उसे जाति से भी बहिष्कृत कर दिया गया था। उसकी बडी भारी प्रतिष्ठा-हानि हुई। अव वह दान का उपयुक्त पात्र भी नही समझा जाने लगा । दुर्दिन की भीषणता और कठोरता विद्युत्माली के लिए अब असह्य हो गयी ।
यह कथा समाप्त करते हुए जम्बूकुमार ने पद्मसेना की ओर