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१२४ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
बडा सन्तुष्ट हुआ और उसने उन्हे एक मन्त्र बताया । इस मन्त्र की साधना असम्भव तो नही थी, किन्तु श्रमसाध्य और तनिक कठिन अवश्य थी । पद्मसेना | उस विद्याधर ने वह ६ खण्डो वाला मन्त्र कैसे साधा जाता है - इसकी सारी विधि भी उन्हे समझा दी । इन मन्त्रो का छ. माह तक जाप करना था- इसमे तो कोई विशेष कठिनाई नही थी, किन्तु इसकी विधि का जो एक और अनिवार्य अंग था, वह दुष्कर था । जाप प्रारम्भ करने के पूर्व मेघ माली और विद्युत्माली को चाण्डाल - कन्या से विवाह करना था और इस जाप अवधि मे उनको ब्रह्मचर्ययुक्त दाम्पत्य जीवन भी व्यतीत करना था । तभी मन्त्रों को साधा जा सकता था । दारिद्र्य के बोझ तले दबे इन बन्धुओ ने सुख प्राप्ति की आशा मे यह सब कुछ करना स्वीकार कर लिया ।
दोनो भाइयो ने मन्त्रो का जाप प्रारम्भ कर दिया । उन्होने चाण्डालिनी से विवाह भी किया और दृढतापूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत का निर्वाह भी करने लगे । सयोग से जिस कन्या के साथ उन्होने विवाह किया था वह अद्वितीय रूपवती थी । आकर्षण और सम्मोहन तो उसके रोम-रोम मे बसा हुआ था । कमलदल से उसके विशाल और सुन्दर नेत्र सदा निमन्त्रण युक्त रहते थे और उसके अग-प्रत्यग मे दर्शक को उन्मादी बना देने का प्रचुर सामर्थ्य था । ऐसी अवस्था मे ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना स्वय मे ही एक तप था। वह जप भी चलता रहा और यह तप भी । कुछ माह तो यो व्यतीत हो गये, किन्तु विद्युत्माली दुर्बल निकला । लमगम ने उनका व्रत खण्डित कर दिया । विद्युत्माली साधना के