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११८ | मुक्ति का अमर राही जम्बूकुमार अपने आभूषण मुझे दे दो। मैं उन्हे उस पार रख आता हूं, फिर तुम्हे ले जाऊंगा।
हे कुमार | पद्मसेना ने फिर जम्बूकुमार को सम्बोधित कर तनिक सावधान कर दिया और कहने लगी कि कपिला तो चोर पर आसक्त हो गयी थी। उसने चोर के प्रस्ताव पर विचार भी नही किया और अपने समस्त आभूषण उसे दे दिये । चोर आभूषण लेकर नदी मे कूद पड़ा और तैरता हुआ उस पार चला । वह तट पर पहुंच गया, तो इस पार खड़ी कपिला सोचने लगी कि अब शीघ्र ही वह इधर आकर मुझे भी अपने साथ ले जायगा । किन्तु वह तो नदी के उस पार निकल कर आगे बढ़ने लगा। यह देखकर कपिला जोर से चिल्लाई-अजी तुम किधर चल पड़े ? इस तरफ आकर मुझे उस पार क्यो नही ले जाते ? चोर ने उत्तर दिया कि मैं अब तुमको लिवाने के लिए उस किनारे पर नही आऊँगा। मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना है । तुम्हारा क्या भरोसा ? पहले तुमने राजा के साथ धोखा किया और उस महावत के साथ प्रेम-लीला करने लगी और अब उस महावत को भी तुमने धोखा दिया है। उसे मृत्युदण्ड दिलवाकर अब तुम मुझे फंसाना चाहती हो। तुम पर मैं कैसे विश्वास कर सकता हूँ ? कल तुम मुझे भी धोखा देकर किसी चौथे को अपना बना लोगी । नही, मैं ऐसी मूर्खता नही करूँगा। इस आशय का उत्तर देकर वह कपिला के आभूषण लेकर भाग चला ।
कपिला ठगी गयी थी। वह अब न इधर की न उधर की, कही की नही रह गयी थी। वह अपने दुष्कर्मों पर पछताने लगी।