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११६ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
यह जानने को पहुंची कि यह शोर किस बात का है। इस पुरुष को देखकर कपिला इस पर मुग्ध हो गयी। उसका चंचल मन महावत से हट कर इस नये पुरुष पर मंडराने लगा। वह इस पर लट्ट हो गयी । उसके साथ दाम्पत्य जीवन व्यतीत करने की उद्दाम उत्कण्ठा ने उनको उद्वेलित कर दिया और उसके नयनो में लाल डोरे उतर आये । कपिला इस अपरिचित व्यक्ति को अपने पति रूप मे प्राप्त कर लेने को व्यग्न थी। उस व्यक्ति ने अपनी कहानी संक्षेप मे सुनाते हुए कहा कि मैं एक बहुत ही बुरा आदमी हूँ। चोरियां करना ही मेरा व्यवसाय है। अभी भी मैं समीप के गाँव से खूब धन चुरा कर लाया हूं और घर वालो के जाग जाने के कारण आफत में फंस गया है। गांव वाले मेरा पीछा कर रहे हैं । तुम मेरी रक्षा करो । कपिला ने तुरन्त ही एक युक्ति सोच निकाली। चोर भी उससे सहमत हो गया।
धन का गट्ठर चोर ने सोये हुए महावत के सिरहाने रख दिया और वह स्वय काफी दूर हट कर कपिला के साथ बैठकर बातें करने लगा। चोर ने चिन्ता व्यक्त की कि तुम्हारे पति को चोर समझ कर गाँव वाले पकड़ ले जायेंगे और' "। कपिला चोर की बात काटकर वीच ही मे बोल पड़ी कि नही""नही । यह मेरा पति नही है। यह मेरा अब कुछ भी नही है । मैं तो रानी हूँ और यह हमारे राज्य मे एक महावत था। इसके बाद उसने थोडे मे अपना सारा वृत्तान्त कह सुनाया। इसी समय शोर मचाती भीड मन्दिर मे घुस आयी। धन का गदर देखकर लोगो को अपनी सफलता पर हर्ष हुआ। उन्होने चोर समझकर महावत