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११२ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
उसके मुख से चीत्कारे निकलने लगी। महावत का क्रोध इसमे और भी भीषण हो गया और अधिक शक्ति के साथ वह प्रहार करने लगा । यह सारा कोलाहल सुनकर एक प्रहरी महावत के घर के बाहर ठिठक कर खडा हो गया। उसे अनुमान लगाने मे विलम्ब नही हुआ कि वेचारी किसी अबला पर अत्याचार किया जा रहा है। सहायता की भावना उसके मन मे उमड पडी जिसने उसके पैरो को गति दी। वह घर के भीतर घुस गया और जो देखा उससे वह अवाक् ही रह गया कि अरे, यह तो हमारी राजरानी कपिलादेवी है। ये महावत के घर कैसे हैं ? महावत को उनके साथ ऐसा अभद्र व्यवहार करने का साहस कैसे हुआ ? कही ऐमा तो नहीं है कि ? अनेक प्रश्न उसके मन मे घुमडने लगे, अनेक कल्पित उत्तर भी तैग्ने लगे। वह बेचारा अल्पबुद्धि किसी निष्कर्ष पर पहुँच ही कैले सकता था। उसके सामने तो एक अति विकट समस्या आ उपस्थित हो गयी थी कि अब उसे आगे क्या करना चाहिए । रानी को अपनी उपस्थिति का आभास कराने का साहस भी वह नही कर सका और दबे पांवो वह घर से बाहर निकल आया था। किन्तु जो कुछ उसने देखा था, इसकी सूचना क्या उसे राजा को देनी चाहिए या देखी-अनदेखी कर जाना चाहिए-वह कुछ भी निश्चय नही कर पा रहा था । वह सोचने लगा कि अगर वह सूचना नही देता है तो उसकी स्वामिभक्ति की भावना को ठेस लगती है और यदि वह सूचना दे तो इस भय से वह आशकित था कि राजा उसके कथन पर विश्वास कर ही लेगा-इसका क्या ठिकाना है। संभव है राजा उसी से