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बंग किसान की कथा | ६७
खाली कर ईख बो दी जाय । वग के परिवार वाले उसकी उतावली से परेशान हो उठे । माता-पिता ने उसे समझाया कि बेटा माना कि तुम जो फसल बोना चाहते हो वह बहुत अच्छी है, मगर उसे बोने की इतनी शीघ्रता भी क्या है। बाजरा कुछ ही दिनो में पक जायगा, उसे काटना ही है। उसके बाद तुम खेत मे ईख बो देना । कुछ ही समय की प्रतीक्षा तो करनी है । किन्तु बंग पर किसी के भी प्रबोधन का कोई प्रभाव नही हुआ । वह तो तुरन्त ही ईख बो लेना चाहता था। वह मधुर रस और गुड़ के सेवन की घड़ियो को कैसे आगे खिसकने दे सकता था।
वग निश्चय ही बुद्धिमान था, किन्तु साथ ही वह दुराग्रही भी परले सिरे का था । जो वह एक वार सोच लेता, उसे शीघ्र ही कर लिया करता था, आगा-पीछा सोचना उसके स्वभाव मे नही था । अतः उसने परिवार वालो की असहमति की तनिक भी चिन्ता न करते हुए खेत में ईख वोने का पक्का निश्चय कर लिया। सवके विरोध करते-करते भी बग नेअपने खेतो मे से बाजरे की फसल को काट-काटकर फेकना आरम्भ कर दिया। देखते ही देखते सारा खेत चौपट हो गया। घरवालो को उससे बड़ा दुख हआ, किन्तु भावी सुख की कल्पना मे निमग्न बग बड़ा उल्लसित था। उसने अत्यन्त स्फूर्ति के साथ सारे खेत को जोत कर तैयार कर दिया और उसमे ईख बो दी। तब उसने सन्तोष की साँस ली और उसके मन चक्षुओ के समक्ष उमका यह नग्न खेत देखते ही देखते गन्ने की ऊँची फसल से विभूषित हो उठा। उसकी जीभ मीठे गुड के स्वाद का आनन्द लेने लगी। खेतो की मेडो पर