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१०२ | मुक्ति का अमर राही : जैम्बूकुमार
यह बाधा अब दूर हो गयी थी। वे दुर्बल प्राणी अपने भय के उस कारण को देख लेने की कामना से एकत्रित हो गये । उनके कोलाहल से वन गूंज उठा।
ध्यान से सुनना समुद्रश्री इस कथा को-जम्बूकुमार ने पत्नी को सावधान करते हुए कहा कि इन हजारो पक्षियो मे एक कौआ भी था । जब तक वह हाथी जीवित था-कदाचित यही कौआ उससे सर्वाधिक डरा करता था। अब अपने आश्रय-स्थल ववूल की डाल से उडता हुआ आकर वह हाथी के शव पर बैठ गया । कुछ ऐसी अकड के साथ उसने अपनी गर्दन को ऊँचा किया, मानो उसे इस बात का अभिमान हो रहा हो कि उसने ही अपने पराक्रम से इस हाथी का वध कर वन्य पशु-पक्षियों को भययुक्त कर दिया है। तब सहसा ही उसने अपनी पैनी चौच हाथी के मांस मे गढा दी और शक्ति लगाकर शव का कुछ मांस नोच लेने मे वह सफल हो गया । बडे स्वाद के साथ वह उसे खाने लगा। अब से पहले कभी उसे हाथी का शव नही मिल पाया था । अत उस दिन उमे आहार में विशेष रस आने लगा। वह इस अपार सुख मे निमग्न हो गया और सतत रूप से उदर-पूर्ति करता रहा । कुछ दिन इसीप्रकार व्यतीत हो गये । कौआ इस सुख मे कुछ ऐसा खो गया कि उसे अपने आस-पास के जगत् का भी कुछ ध्यान नहीं रह गया। अब तो यह हाथी का शव ही उसका आहार भी था और यही उमका निवास स्थान भी ।
हुआ ऐमा ममुद्रधी, . .कुछ क्षण मौन रहकर जम्बूकुमार पुन कहने लगे कि तभी यकायक ही आकाश घनघोर मेघो से