________________
रानी कपिला की कथा | १०६
प्रियतमा की इम लीला को समझ ही नही पाया । रानी की इस अभिनयशीलता पर वह अव भी न्योछावर हुआ जा रहा था ।
इस छलनामयी नारी कपिला का मन जिस पर आ गया था-उसके विपय मे जानकर हे स्वामी | आप आश्चर्य मे पड़ जायेंगे । प्रभुत्वशाली, सर्वगुणसम्पन्न, समर्थ राजा की रानी होकर भी कपिला के पतित मन मे जिस अन्य पुरुष की मूर्ति विराजित थी, वह राजा का एक तुच्छ सेवक एक महावत था। नवीन-हीनवीन की लालसा मे रानी ऐसी अन्धी हो गयी थी कि उसने जिसे अपना प्रीतिपात्र चुना था उसकी स्थिति और अपनी मर्यादा की तुलना भी वह नही कर सकी। इसमे उसे तनिक भी अनौचित्य की प्रतीति नहीं हुई।
राजा का रानी कपिला के प्रति प्रेम एक पक्षीय हो गया था। राजा की प्रीति मे तीव्रता ज्यो की त्यो बनी हुई थी, किन्तु रानी उससे मन-ही-मन उदासीन हो गयी थी। इधर महावत के साथ कपिला की जो प्रणय-लीला चल रही थी, उसमे दोनो ही पक्ष सक्रिय
थे । रानी और महावत, दोनो ही परस्पर इस कदर अनुरक्त थे कि __ जब तक वे वियुक्त रहते छटपटाते रहते । बड़ी कठिनाई से दिन
का समय वे व्यतीत करते और आकाश मे जब सध्या फूल जाती तो मानो कपिला के हृदय मे बसी महावत के प्रति प्रीति की लालिमा ही बिखर जाती थी। यह साध्य वेला प्रेमी युगल के के लिए मिलन का मगल सन्देश लेकर आती थी। दोनो अत्यन्त अधीरता के साथ मध्यरात्रि की प्रतीक्षा करने लग जाते थे । दिन भर क्रिया-सकुल रहने के पश्चात् देर रात्रि मे जब राजभवन मे