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बंग किसान की कथा | ६३
कठोर धरती को अपनी शैय्या और नीलगगन को चादर बना सकेंगे। क्या आप पथरीले और कॅटीले वन्य मार्गों पर अपने कमलवत् चरणो को सुदीर्घ काल तक अग्रसर कर सकेंगे । निराहार और तृषित रहने की क्षमता आप मे है ही नही । गहन कन्दराओ के तिमिर से भयभीत हो जाने वाले अपने मन को किस प्रकार आप साधना मे स्थिर कर पायेगे ? इस मार्ग पर सचरण का आपका सकल्प दुस्साहस मात्र होगा-यह आपके वश का कार्य नही और इस ओर सफलता की अभिलाषा केवल मृग तृष्णा ही है। हे स्वामी ! मेरे कथन पर ध्यान दीजिए और इस काल्पनिक सुख के लिए उपलब्ध सुख-सुविधाओ का परित्याग मत कीजिए। पिताश्री के आश्रय मे आपको कोई अभाव नही है। अपार वैभव और सुख-सुविधाएँ आपकी सेवा मे रहकर कृतकृत्य हो जायगी। __ समुद्रश्री के इस कथन को जम्बूकुमार दत्तचित्तता के साथ सुनते जा रहे थे, उस पर विचार करते जा रहे थे। तभी समुद्रश्री के आगामी कथन ने उन्हे तनिक सजग कर दिया। समुद्रश्री ने कहा कि यदि इस चौराहे पर आकर आपने उपयुक्त मार्ग को नही चुना, तो आप भी वर्तमान सुखो से वंचित होकर बग किसान की भाँति ही पछतावे के शिकार होकर रह जायेंगे, क्योकि लक्ष्यित सुख की प्राप्ति आपके लिए सम्भव प्रतीत नहीं होती। बग किसान का सन्दर्भ आने पर जम्बूकुमार के मन मे एक कुतूहल उत्पन्न हुआ। बग का वृत्तान्त जान लेने की उत्सुकता से उन्होने समुद्रश्री से प्रश्न किया कि यह बंग किसान कोन था ? उसके