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२२ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
क्षित पडा रखे, तो इससे बढकर हमारे लिए और कोई घोर पाप कर्म हो ही नही सकता ।
अब ऋषभदत्त के लिए कुछ भी शेष न बचा था । वह क्या प्रश्न करता ? कुछ क्षण तो वह मौन रह कर पुत्र की सदगुणशीलता पर ही विचार करता रह गया । उसने पुत्र के इस सत्कर्म के लिए साधुवाद करते हुए कहा कि वत्स । तुमने निस्सन्देह उपयुक्त कर्म किया है । तुम मानवमात्र के लिए सहानुभूति और करुणा का इतना गहनभाव रखते हो - इसका ज्ञान मुझे आज पहली बार ही हुआ है । सममुच । मुझे इसकी बड़ी प्रसन्नता है । जम्बूकुमार के इस आचरण से ऋषभदत्त को मन ही मन गर्व का अनुभव होने लगा था और उसे इस बात का विश्वास भी होने लगा था कि जम्बूकुमार का धवल यश समग्र ससार मे व्याप्त होगा और एक दिन अवश्य ही हमारे वश को महत्ता प्राप्त होगी ।
जम्बूकुमार के चरित्र की एक अन्य प्रमुख विशेषता यह भी थी कि वे अटल सत्यशील थे । वे कभी भी किसी प्राणी को कष्ट नही पहुंचाते थे । सदा सावधानी के साथ कार्य करते थे कि कही किसी क्षुद्र से जन्तु को भी उनके कारण कोई हानि न हो । अपने इन्हीं सदगुणो के कारण जम्बूकुमार अत्यन्त लोकप्रिय हो गये थे और सारा राजगृह उनके प्रति ममता और प्रेम का भाव रखने लगा। धीरे-धीरे दूर तक उनके गुणो और कर्मों की चर्चा फैल गयी और उनका यश मगध राज्य की सीमा लांघ कर समस्त जम्बूद्वीप मे प्रसारित होने लगा ।