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६४ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
स्नेहपूरित नेत्रो से आनन्दाश्रु प्रवाहित होने लगे। समस्त शुभाशीर्वादो के साथ माँ ने पुत्र को विदा किया । गजारूढ जम्बूकुमार का रूप अत्यन्त दिव्य और भव्य था। वे देवता ही लग रहे थे। समस्त बराती जन भी भॉति-भाँति के वस्त्रालकारो से सजे-सँवरे थे । हाथी, घोडे, रथ, पालकी आदि विविध वाहनो मे आरूढ ये बराती जन भी अत्यन्त आनन्दित हो रहे थे। सर्वत्र आनन्द और उमग का वातावरण था । भांति-भांति के वाद्यो का घोप इस उत्साह को कई गुना बढाता जा रहा था। पुष्पहार स्वय ही वर के कण्ठ से लगकर मानो गौरवान्वित हो रहे थे। राजगृह नगर मे ऐसी भव्य वरयात्रा वर्षों से नही निकली थी। उत्कठित नारियो ने अपने गवाक्षो से इसकी शोभा को निहारा और सराहा । नागरिक जनो के विशाल समुदाय मार्ग के दोनो ओर एकत्रित हो गये थे। सभी ने शुभाशीर्वादो के साथ वर के लिए मगल कामनाएँ की।
अत्यन्त भव्यता के साथ जम्बूकुमार का पाणिग्रहण सस्कार सम्पन्न हुआ । कन्या पक्ष ने अपनी मान-मर्यादा के अनुरूप अपार दहेज और भेट आदि का आयोजन किया। विदा होकर वर जम्बूकुमार जव अपनी आठो वधुओ के साथ लौटकर आये तो द्वार पर आरती उतारकर धारिणीदेवी ने वर-वधुओ का मगलाचार सहित स्वागत किया। आज उसके एक स्वप्न ने आकार ग्रहण कर लिया था। उसका भवन आज सुख और सम्पदाओ से भर गया था। धारिणीदेवी की आशकाएँ आज समाप्त हो चली थी और उसे सर्वत्र रस ही रस, रग और उमग दृष्टिगत