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६२ ! मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
मेरा विचार तो यह है कि यदि वास्तव में जम्बूकुमार ने साधु बन जाने का व्रत ले भी रखा हो, तब भी उससे हमे चिन्तित होने की आवश्यकता नही । वे स्वय ही अपने व्रत को विस्मृत कर देंगे । और मात्र इस काल्पनिकमय के अधीन होकर हमे अपने । धर्म से विचलित नही होना चाहिए। हम मन से एक बार जव जम्बूकुमार को अपना पति मान चुकी है तो हमारा विवाह उन्ही के साथ सम्भव है।
विचारो के इस क्रम को एक कन्या ने और आगे बढाते हुए कहा कि वहन । तुम्हारे इस मत मे भी कोई अनौचित्य नही दिखायी देता, लेकिन प्रभु ऐसा न करे, यदि जम्बूकुमार ने दीक्षा ग्रहण कर ही ली, तब भी हम लोगो के लिए क्या सकट है। जम्बूकुमार ही विवाह के पश्चात हम सबके तन-मन के स्वामी होगे। वे जिस मार्ग पर अग्रसर होगे वही हम सभी का मार्ग भी होगा। हमारे पतिदेव ही तो हमारे लिए अनुकरणीय होगे। फिर सोचने की बात यह भी है कि वे जिस मार्ग को अपनाना चाहते है वह क्या श्रेयस्कर नहीं है ? इस मार्ग को अपनाने को अन्त प्रेरणा तो सौभाग्यशाली लोगो को ही मिलती है। पत्नी का भाग्य विवाहोपरान्त अपने पति से जुड़ जाता है। पति के यश-अपयश का उचित अश पत्नी को भी सहज रूप मे और स्वत ही प्राप्त हो जाता है। उस प्रकार यह तो हमारे लिए महान सौभाग्य का प्रसंग होगा। पतिदेव के चरण-चिह्नो पर चलकर हम भी धन्य हो जायेंगी। सुनो बहनो ! यदि ऐसा ही हुआ तो यह हम सब के लिए भाग्योदय ही होगा। हम भी सत्य,