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विवाह एवं पत्नियो को प्रतिबोध | ६१
औपचारिकताएँ शेष रह गयी है, वे भी पूरी कर ली जाएँ । अन्य कन्या ने इसके स्वर मे स्वर मिलाते हुए कहा-वहन ! तुम्हारा कथन सर्वथा उपयुक्त है । जम्बूकुमार हमारे पति है-अब हमारा विवाह कही अन्यत्र होना असम्भव है, अपितु इस विषय मे सोचना भी पाप है । अब प्रश्न यह है कि विवाह के तुरन्त पश्चात् उन्होने साधु बन जाने का सकल्प कर लिया है। मैं समझती हूँ यह उनका दिखावा ही दिखावा है अन्यथा वे विवाह करना ही क्यो स्वीकार करते । सम्भव है कि वे इस प्रकार हमारी निष्ठा और सत्यशीलता की परीक्षा ही कर रहे हो, हम भी तो इस परीक्षा मे असफल सिद्ध नही होगी। बहनो ! वे कोई साधु-वाधु नही होने वाले । तुम सब निश्चिन्त रहो और हमे अपने निर्णय को परिवर्तित करने की आवश्यकता नही है ।
एक कन्या ने बात को और आगे बढ़ाते हुए कहा कि अच्छा हो, यदि साधु जीवन ग्रहण कर लेने का सकल्प कोई बहाना ही हो । यदि यह उनका बहाना न होकर वास्तविकता भी रखता हो, तब भी उनका यह संकल्प क्या सकल्प रह भी सकेगा। अरी बहनो | जब वे अपनी नव-वधुओ के शृगार को देखेंगे तो मुग्ध हो जायेगे । हमारे सौन्दर्य के उन्मादक प्रभाव से क्या वे बच सकेगे । यौवन और आकर्षण के बन्धन मे वे ऐसे बँधेगे कि उन बन्धनो से मुक्त होने की कामना भी उनके चित्त मे कभी अकरित नही हो पाएगी । वे साधु क्या बनेंगे ? उनका मन स्वय उन्हे इसके लिए प्रेरित करेगा तब न ! और मन होगा हमारे बश मे, उस पर उनका अधिकार ही शेष नही रहेगा । बहनो !