________________
विवाह एवं पत्नियो को प्रतिबोध । ६३
___ अहिंसा, क्षमाशीलता तथा साधना के मार्ग पर अग्रसर होगी।
साध्वी जीवन धारण कर हम भी चिर आनन्द की प्राप्ति के लिए सचेष्ट रहेगी। हमारे लिए इसमे हानि का प्रसग कौन-सा है ? मुझे लगता है कि हमारे लिए यह आत्मोन्नति का एक सुन्दर अवसर है, जिसे हमे खोना नही चाहिए।
सभी कन्याओ ने इस प्रकार अपने-अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत किये और अन्तत यही निश्चय किया गया कि जम्बूकुमार के दीक्षा ग्रहण करने के व्रत के कारण हमे विचलित नही होना चाहिए । हमारा विवाह पूर्व निश्चय के अनुसार जम्बूकुमार के साथ ही होना चाहिए। इस निश्चय में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन न तो शोभनीय एव उचित है और न ही आवश्यक है। कन्याओ के इस निश्चय की सूचना उनके माता-पिताओ को भी मिल गई और उन्होने जम्बूकुमार तथा उनके पिता को अपनी अन्तिम स्वीकृति भेज दी । परिणामत विवाहोत्सव की तैयारी और उत्साह, जो बीच मे कुछ मन्द हो चला था, अब पुन. तीव्र और प्रखर होने लगा।
विवाह का निश्चित दिन भी आ पहुँचा । शुभ वेला मे श्रेष्ठि ऋषभदत्त के भवन से वरयात्रा का प्रस्थान हुआ। माता धारिणी का हृदय तो आज अपनी चिर प्रतीक्षित कामनापूर्ति से अत्यन्त हषित था। वर-वेश मे अनुपम और बहुमूल्य वस्त्रालंकारो से शोभित अपने पुत्र को देखकर धारिणीदेवी के मन को अद्भुत शीतलता और सन्तोष का अनुभव होने लगा। उसके