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८४ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
आप भी तो उसी की भाँति उपलब्ध भव्य सुखो को तुच्छ मानकर "उनके परित्याग के लिए कटिवद्ध है । ऐसी प्रवृत्ति का परिणाम घोर हाहाकार और उद्दाम अनुताप के अतिरिक्त और कुछ हो ही नही सकता । अत. कृपाकर आप मेरा अनुरोध स्वीकार कर अपने भावी सुखो की ललक को समाप्त कीजिए । इसी परिवार मे रहकर जीवन के रस से आनन्दित होने की रुचि पनपाइये । इसी मे आपका और हम सबका हित है । दीक्षा ग्रहण करने का विचार ही अपने हृदय मे मत आने दीजिए । सभी स्वजनो के हित को ध्यान में रखकर ही ऐसा कर लीजिए ।
विचारशील जम्बूकुमार पत्नी पद्मश्री का कथन समाप्त होते-होते गम्भीर हो गये । उनकी मुख-मुद्रा से उनकी मानसिक असामान्यता प्रकट होने लगी थी और पद्मश्री को अनुभव होने लगा था कि वह जम्बूकुमार के चित्त को अनुकूल रूप से प्रभावित करने मे सफल रही है ।