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२४ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
कमलमाला था । श्रेप्ठि सागरदत्त के यहाँ तीसरी देवी ने जन्म लिया उसका नाम पद्मसेना रखा गया था और उसकी माता का नाम विजयश्री था। इसी प्रकार चौथी देवी ने भी राजगृह के विख्यात श्रेष्ठि कुवेरदत्त की पुत्री के रूप में जन्म लिया जिसका इस जन्म का नाम कनकसेना था व जयश्री उसकी माता का नाम था । यह अद्भुत सयोग था कि विद्युन्माली देव और उनकी चारो पलियो ने कुछ समय के पश्चात एक ही नगर में जन्म लिया । स्पष्ट है कि ये सभी प्राय समवयस्क भी थे।
श्रेष्ठि ऋषभदत्त के पुत्र जम्बूकुमार के रूप, गुण, यश और ऐश्वर्यादि से प्रभावित होकर समुद्रश्री, पद्मश्री, पद्मसेना और कनकसेना के माता-पिता की हार्दिक अभिलाषा थी कि उनकी पुत्रियो का जम्बूकुमार के साथ विवाह हो जाय । उन अभिभावको ने इस दिशा मे प्रयास भी आरम्भ कर दिये।
इनके अतिरिक्त राजगृह के चार अन्य वैभवशाली श्रेष्ठि भी अपनी-अपनी कन्यायो के लिए इस दिशा मे प्रयत्न कर रहे थे। श्रेष्ठि कुवेरसेन अपनी पुत्री नभसेना का हित जम्बूकुमार के साथ उसके पाणिग्रहण सस्कार हो जाने में ही मानने लगा था । नभसेना की माता का नाम था कमलावती । श्रेष्ठि श्रमणदत्त की कन्या थी कनकधी और सुपेणा था उस कन्या की माता का नाम । वसुसेन अन्य श्रेष्ठि था, जिसकी पत्नी का नाम था वीरमती। इस दम्पति की पुत्री यी-कनकवती और वसुपालित नामक धष्ठि की पुत्री थी जयश्री । जयसेना जयश्री की माता का नाम था।