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३४ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
परिचित होकर अब मेरे मन मे जागतिक सुखोपभोग के प्रति घोर उपेक्षा का भाव जागरित हो गया है। मैं साधना के मार्ग को अपनाना चाहता हूँ। सासारिक सम्पदाओ, विभूतियो, सुखो के प्रति मेरे मन में कोई आकर्षण नहीं है और न ही स्वजन-परिजनो के प्रति अपनत्व का भाव शेष रहा है। स्वामि, मेरे मन मे उदित विरक्ति के भाव को आप कृपापूर्वक आशीर्वाद प्रदान कर पोषित कीजिए। मुझे दीक्षा प्रदान कीजिए। मैं तत्काल ही गृहत्याग करना चाहता हूँ। आपश्री का सम्बल अवश्य ही मुझे सफलता प्रदान करेगा। मुझे दीक्षा प्रदान कीजिए प्रभु दीक्षा प्रदान कीजिए !! जम्बूकुमार का मस्तक आर्य सुधर्मास्वामी के चरणो मे नमित हो गया।
अधीर जम्बूकुमार को अपने कोमल स्वर से आर्यश्री ने स्थिरता प्रदान करते हुए कहा कि वत्स ! तुम्हारे मन मे धर्म के प्रति गहन रुचि है-यह जानकर हमे अत्यन्त हर्ष हुआ है । तुम कौन हो ? किसके पुत्र हो ? तनिक अपना परिचय तो दो हमे ! जम्बूकुमार ने विनीत स्वर मे अपने माता-पिता का परिचय प्रस्तुत करते हुए अपना नाम बताया और मौन हो गये । आर्यश्री भी श्रेष्ठि ऋषभदत्त का नाम सुनकर तनिक गम्भीर हो गये । वे सोचने लगे कि इतने सम्पन्न परिवार मे, वैभव की गोद मे पालित-पोषित होकर जम्बूकुमार के लिए साधुजीवन व्यतीत करना कठिन हो सकता है। उन्होने अपना मौन भग करते हुए जम्बूकुमार को सम्बोधित किया कि वत्स | तुम कदाचित जिस जीवन को अपनाना चाहते हो, उसकी कठोरता से परिचित नही