________________
५४ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
बना पायगा, कोई बाधा मेरे लिए अवरोध न बन पायगी । आत्मविश्वास के साथ मैं सतत रूप से साधना मार्ग मे आगे-से-आगे बढता चला जाऊंगा और एक दिन लक्ष्य प्राप्ति में भी अवश्य ही सफल हो जाऊँगा । आवश्यकता आप लोगो के आशीर्वादो की ही है। ____ माता धारिणीदेवी का उत्साह बुझता चला जा रहा था । ज्योज्यो वह जम्बूकुमार को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करती जा रही थी, त्यो हो त्यो उलटा जम्बुकुमार का ही पलड़ा भारी होता जा रहा था । अन्तत. उसने एक और अस्त्र का प्रयोग किया । निराशा में बुझे शब्दो के साथ उसने अत्यन्त गम्भीरता के साथ कहा कि बेटा ! तुम माधु-जीवन की समस्त योग्यताएँ रखते हो-यह मान भी लिया जाय, तब भी तुम्हारे प्रवजित हो जाने के कारण तुम्हारे पिता की प्रतिष्ठा को जो हानि होगी, लोक मे उनका जो अपयश होगा-क्या तुम्हे उसकी तनिक भी चिन्ता नहीं है । सुपुत्र होने के नाते हम तुम से ऐसी ही आशा रखते है कि अपने किसी कार्य से तुम हमारी निन्दा नही होने दोगे । इस नवीन युक्ति को जम्बूकुमार समझ नही पा रहे थे कि कौन सी निन्दा, अपयश का क्या कारण और इनसे मेरे दीक्षा ग्रहण करने के कार्य का क्या सम्बन्ध ! वे आवाक् रह गये । कुछ क्षणोपरान्त उन्होने कहा माता ऐमा कदापि नही होगा कि मेरे किसी कर्म से पिताजी के मान-सम्मान को ठेस पहुंचे। ऐसा मैं किसी भी परिस्थिति में नहीं होने दूंगा किन्तु मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि ... जम्बूकुमार का वाक्य अपूर्ण रह गया और बीच ही मे धारिणीदेवी बोल उठी कि मैं समझाती हूँ, तुम्हे सारी बाते । सुनो,