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गृहत्याग का निश्चय एवं विवाह-स्वीकृति | ५३
दौड़ेगी तो तुम्हारा कोमल हृदय भय से काँप-काँप जायगा। फिर वनो मे सिंह, बाघ, बनैले रीछ, भयकर विषधर नाना प्रकार के हिंसक जीव रहते हैं । रात्रि में जब इनकी घोर गर्जनाएँ और गुर्राहटे होगी तब तुम अपने मन को कैसे अविचलित रखोगे । नहीं, यह सब तुम्हारे बस की बात नही है। वन में कौन तुम्हारी रक्षा करेगा। कौन तुम्हारा सहायक होगा । अत अपनी हठ छोड़ दो जम्बू ! न तुम्हारे अनुकूल यह जीवन है और न इस प्रकार के जीवन के उपयुक्त तुम हो। तुम्हारे भाग्य मे तो यह सुखी जीवन बदा है-इसका आनन्द लो।
जम्बूकुमार ने साधक-जीवन की कठोरताओ को पहली बार ही अपनी माँ से सुना हो-ऐसी बात नहीं थी। उन्होने तो स्वय में इन कठिनाइयो को समता से सहने की शक्ति पनपा ली थी । अत माता का यह प्रयत्न भी विफल हो गया । जम्बूकुमार न भयभीत हुए, न आतकित । अपनी सहज-शान्त मुद्रा में ही उन्होंने उत्तर दिया कि कठिनाइयाँ और भय भी माँ ! मन की दुर्बलता की अवस्था में ही हावी होता है । जब मन सवल और निर्भीक हो जाय तो बाहर की कोई भी परिस्थिति मनुष्य को विचलित नहीं कर सकती, उसके मार्ग मे बाधक नही हो सकती। माँ ! तुमने मेरे शरीर की कोमलता को ही देखा है, उसके भीतर के निर्भीक मन से तुम्हारा परिचय नही है। इसी कारण तुम्हे मेरी सघर्षशीलता और साहस-शक्ति का सत्य-सत्य भान नहीं है । माँ | विश्वास करो मैं अविराम गति से अपने मार्ग पर अग्रसर होता रहूंगा और कोई कष्ट मेरे लिए कष्ट नही रह जायगा, कोई भय मुझे भीरु नहीं