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गृहत्याग का निश्चय एवं विवाह-स्वीकृति | ५७
ही अपने निश्चय को विस्मृत कर देगा । उन कटाक्षबाणो से जम्बू का हृदय ऐसा आहत होगा, प्रेम की मधुर पीर ऐसी जागरित होगी कि यह दीक्षा का नाम भी भूल जायगा। उसके मन मे। सन्तोष था कि चलो, पुत्र ने विवाह कर लेना तो स्वीकार कर लिया है। उसके पश्चात् तो इसकी पत्नियो की भूमिका ही रह जाती है, कि वे इसे गृह-त्याग न करने दे। कन्याएँ सुशील और कुशल हैं। वे अपनी भूमिका का निर्वाह सफलतापूर्वक कर लेगी। अब माता धारिणीदेवी और पिता ऋषभदत्त के मन से चिन्ता का बोझ उतर गया था। वे एक प्रफुल्लता का अनुभव करने लगे।