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१८ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार मानस-सरोवर मे स्नेह और ममता की लोल लहरियाँ उठती रहती और स्निग्ध वचनावली एव मधुरतम व्यवहार के रूप मे उनकी शीतल बौछार बालक जम्बूकुमार को हर्षित कर देती थी। माता ऐसे पुत्र को प्राप्त कर धन्य हो गयी थी और ऐसी ममतामयी माता को पाकर पुत्र निहाल हो गया था ।
शनै -शन. जम्बूकुमार की आयु बढने लगी और अब वह शिक्षा-प्राप्ति के योग्य हो गया । सम्पन्न श्रेष्ठि ऋपभदत्त ने जम्बू कुमार के लिए शिक्षा की अत्युत्तम व्यवस्था की । सुयोग्य आचार्यों को विभिन्न विद्याओ के लिए नियुक्त किया गया। बालक जम्बू कुमार भी दत्तचित्तता के साथ अध्ययन करने लगा । बालक वडा ही कुशाग्रबुद्धि था। वह शीघ्र ही ज्ञान को हृदयगम कर लिया करता था। जम्बूकुमार की अद्भुत प्रतिमा देखकर आचार्यगण चकित रह जाया करते थे । अल्पावधि मे ही जम्बूकुमार ने अनेक विद्याओ और ७२ कलाओ मे अद्भुत प्रवीणता प्राप्त कर ली। अब तो उसके समक्ष जीवन और जगत् के रहस्य स्पष्ट होने लगे थे। मौलिक चिन्तन की प्रवृत्ति जम्बूकुमार मे सहजत ही थी। अत अजित ज्ञान के आधार पर वह अपने चिन्तन के बल पर जीवन को समझने और जगत् के सार को पहचानने का प्रयत्न करने लगा।
आयु के साथ-साथ जम्बूकुमार की इस प्रवृत्ति मे भी गहनता और व्यापकता आने लगी । 'हस्तामलकवत्' यह जगत् और जीवन उसके समक्ष स्पष्ट हो गया। कोई सुन्दर और सरस आवरण जम्बूकुमार के लिए यथार्थ तक पहुंचने में व्यवधान नहीं बन