________________
बाल-जीवन | १९
पाता था। किशोर जम्बू की यही प्रवृत्ति उनके उदात्त भविष्य के निर्माण को मूल आधार सिद्ध हुई।
बाल्यावस्था से ही जम्बूकुमार के मन मे मानवीयता के सद्लक्षण थे। पर-दुःख-कातरता का भाव तो उनके मन को द्रवित ही कर देता था। वे किसी को कष्ट मे देख ही नही पाते थे । दुखियो को देखकर उनके नयन छलछला आते थे। उनका परोपकारी हृदय दु.खियो की सेवा-सहायता के लिए उन्हे प्रेरित करता रहता था और वे अपने पास उपलब्ध सामग्री का दान कर उनको कष्ट-मुक्त करने मे ही अपने जीवन की सार्थकता का अनुभव किया करते थे। अन्न, वस्त्र, धनादि के दान मे उन्होने कभी कृपणता नही बरती।
जम्बूकुमार की बाल्यावस्था के समय का ही एक प्रसग है कि एक समय मगध मे भीषण दुर्भिक्ष का सकट आया । अन्नाभाव के मारे जनता तड़प-तडप कर प्राण त्याग रही थी। जीवित जन भी अस्थिचर्म के ढाँचे मात्र रह गये थे। अन्न के एक-एक दाने के लिए लोग सब कुछ करने को तत्पर थे, किन्तु उनको कही से अन्न उपलब्ध न हो पाता था। माता-पिताओ के समक्ष उनकी प्रिय सन्तान भूख से तडप-तडप के मृत्यु की ग्रास हो रही थी। सर्वत्र हाहाकर, क्रन्दन और चीख-पुकार का ही साम्राज्य था । ऐसे ही समय किशोर जम्बूकुमार नगर-भ्रमण को निकले और राजगृह मे मृत्यु की इस विभीषिका को देखकर उनका मन सहानुभूति की भावना से भर उठा। परोपकारी जम्बूकुमार इन दुखित जनो के प्रति करुणा प्रकट करके ही शान्त हो जाने वाले