________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ४ >
देवता का पुराण-युग में प्रादुर्भाव हुआ । वैदिक युग में महान् ऋषिमुनि पाँच तत्वों से परिचित थे और इन्हें ईश्वरीय सत्ता से विभूषित करके 'देवता' का नाम दिया जाने लगा था । यहाँ गुरु तथा शिष्य इन्हीं तत्त्वों की स्तुति करते हैं ।
कोई शान्ति पाठ उस समय तक पूरा हुआ नहीं माना जाता जब तक तीन बार 'शान्तिः' न कहा जाय । प्राचार्यों का मत है कि शास्त्रों के अध्ययन को अबाध गति से चलते रहने का अवरोध तीन प्रकार की बाधाओं द्वारा हो सकता है | ये हैं — प्राधिदैविक ( ईश्वर की ओर से आने वाली ), आधिभौतिक (प्रकृति के तत्त्वों से होने वाली ) और आध्यात्मिक (हमारे भीतर से प्रकट होने वाली ) । श्राध्यात्मिक बाधायों के लिए निष्क्रियता, श्रद्धाहीनता, अविश्वास और हमारी नकारात्मक प्रवृत्तियों से उत्पन्न होने वाले अन्य दोष उदाहरण रूप में दिये जा सकते हैं ।
प्रवचन प्रारंभ करने से पहले हम भी प्रतिदिन शान्ति- पाठ किया करेंगे। जब हम सब मिलकर 'शान्ति' का तीन बार उच्चारण करेंगे तो निष्ठापूर्वक हमारी यह कामना होगी कि ऊपर बतायी गयी त्रिविध बाधाओं में से कोई भी हमारे इस सामूहिक प्रयास में गतिरोध पैदा न करे ।
उपनिषद्-द्रष्टात्रों ने आत्मोत्कर्ष की अलौकिक क्रिया-विधि द्वारा स्वाभिमान को भस्मीभूत कर दिया। जब वे सत्य के स्वर्ण मन्दिर के प्रवेशद्वार पर पहुँचे तो उन्हें इस आश्चर्यमय तथ्य का पता चला कि वे तो आप ही उसके स्वामी हैं । 'सिद्धि' वाला जगत ऐसा है कि वहाँ पहुँच जाने पर कोई लौटता नहीं । इस पर भी इन सिद्धों में से कुछ ऐसे व्यक्ति निःस्वार्थ सेवा की महान इच्छा से प्रेरित होकर संसार में लौट आते हैं। जिससे वे आदर्श जीवन की स्थापना करके यहाँ के नश्वर प्राणियों को सत्य के मार्ग पर ले जा सकें । वे सांसारिक प्राणियों के सामने उस रमणीय एवं अलौकिक क्षेत्र की रूपरेखा खैचने और वहाँ तक जाने के मुख्य मार्ग को प्रदर्शित करने का प्रयत्न करते हैं । जब ऋषियों को ईश्वरीय प्रेरणा हुई और वे उसी भावना में तन्मय हो गये तो उन्हें उपनिषदों सरीखी अपनी अत्युत्तम रचनात्रों के साथ अपने नाम जोड़ने कात निक मात्र विचार न
For Private and Personal Use Only