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हो जाता है हम उनके जीवन को अपना जीवन बना लें। उनकी तपस्या को अपनी तपस्या बना लें। जितना गहन एकान्त, मौन और ध्यान महावीर ने जिया वह हर इन्सान के लिए एक आदर्श है। हर संत और साधक के लिए महावीर अद्वितीय, अप्रतिम प्रेरणा हैं। महावीर को आदर्श बनाए बिना कोई भी व्यक्ति अपनी साधना को पूर्णता नहीं दे सकता। महावीर प्रेरणा के प्रकाश-पुंज हैं। ध्यान में बैठने से पहले हर साधक को दो मिनट के लिए महावीर के जीवन का ध्यान ज़रूर कर लेना चाहिए । महावीर ने लगातार साढ़े बारह वर्ष की जो मौन साधना की, जिस गहन एकांत को देखा उसको दिल-दिमाग में बसाते हुए अपने हृदय के ध्यान में उतरना चाहिए। तब अपने आप चित्त में शांति आएगी और मोह तथा आसक्ति कम हो जाएगी, मन के विकार शिथिल पड़ जाएँगे । महापुरुषों को याद करने का अर्थ और उद्देश्य यही है कि हमारे दिल में निर्मलता और पवित्रता आ जाए। ध्यान में जाने से पहले महावीर के उस पवित्र स्वरूप को, उस दिगम्बर त्यागमय वीतराग मुद्रा को, उस ज्योतिर्मय सिद्ध-बुद्ध-मुक्त स्वरूप को याद कर लीजिए और तब ध्यान में उतरिए। उनके स्वरूप का स्मरण ही किसी सद्गुरु का कार्य कर जाएगा। जैसे पत्थर से पत्थर को रगड़ने से अग्नि पैदा होती है वैसे ही महावीर को याद करने से हमारी मानसिक नपुंसकता दूर हो जाएगी।
___ गीता को लोग इसीलिए पढ़ते हैं कि मन की नपुंसकता दूर हो और भीतर में आत्म-विश्वास की अलख जगे। गीता के भगवान कहते हैं कि अपने हृदय की तुच्छ दुर्बलताओं का त्याग कर आओ और कर्त्तव्य-मार्ग के लिए लग जाओ, घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ। एक कदम आगे तो बढ़ाओ। हमारा मन नपुंसक और कमजोर हो जाता है। चाहते तो हैं कि कुछ करें पर इससे पहले मन इधर-उधर भटका देता है।
महावीर से मौन की, शांति की प्रेरणा लें, एकनिष्ठ ध्यान की प्रेरणा लें। ऐसे गहन ध्यान की प्रेरणा कि किसी भी प्रकार की ध्वनि यहाँ तक कि चिड़ियों की चहचहाहट भी बाधा न बन सके, तभी तो महावीर हमारे लिए सार्थक बनेंगे । महावीर की तरह बोधपूर्वक बोलें, बोधपूर्वक चलें, बोधपूर्वक खाएँ, हर कार्य बोधपूर्वक सम्पादित करें तो यह सब हमारे लिए अहिंसा को जीने का पाठ बन जाएगा।
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