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शांति - समता का अच्छा अभ्यास है। उस दरमियान किसी ने कुछ कह दिया तो सहन कर जाएँगे। हाँ, यह भी अभ्यास हो कि सामायिक के उपरान्त उस बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करेंगे, तभी सामायिक करना सार्थक होगा। इस अभ्यास को बढ़ाना होगा और टेढ़े शब्दों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करनी होगी क्योंकि आप सामायिक में हैं ।
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चौथी बा प्रेम से जीते हुए ‘क्षमा-भाव' रखो। दूसरों से अगर कुछ ग़लत हो गया है तो क्षमा को मूल्य दो । महावीर ने तो कानों में कीलें ठोंकने वाले तक को माफ़ कर दिया। जीसस ने तो सलीब पर चढ़ाने वालों तक को क्षमा कर दिया । मंसूर ने हाथ काटने वालों को, मीरा ने जहर का प्याला देने वालों को भी माफ़ कर दिया । माफ़ी बहुत बड़ा धर्म है । दिगम्बर जैन परम्परा में तो क्षमा की पूजा की जाती है । जैसे शेष परम्पराओं में तीर्थंकरों की, अरिहंतों की, अवतार-पुरुषों की पूजा होती है वैसे वहाँ पर क्षमा-धर्म की पूजा होती है। लोग ईश्वर की आराधना करते हैं वहाँ क्षमा-धर्म की भी आराधना की जाती है। जैन परम्परा की यह व्यवस्था कि वर्ष भर में एक बार 'संवत्सरी' मनाएँगे अर्थात् वर्ष एक दिन क्षमापना के रूप में मनायेंगे। यह अद्भुत बात है । मेरा मानना है कि शेष दुनिया को भी इस बात की प्रेरणा लेनी चाहिए कि वर्ष भर में एक ऐसा दिन निर्धारित किया जाए कि, चाहे वह 31 दिसम्बर ही क्यों न हो, हम उस दिन संध्या को सभी लोग बैठकर प्रार्थना करेंगे, मंगल मैत्री भाव की प्रार्थना करेंगे कि वर्षभर में किसी के भी प्रति वैर-विरोध हुआ हो तो क्षमापना करेंगे, माँगेंगे, क्षमा कर देंगे। साल का आखिरी दिन है, पूरे वर्ष का लेखा-जोखा उस दिन समाप्त कर ही देना चाहिए कि नववर्ष में शुद्ध और निर्मल हृदय से प्रविष्ट हो सकें। उस दिन मन के बर्तन को साफ-सुथरा कर, जीवन के, सम्बन्धों के बर्तन को धो-पौंछकर जब नए साल में 1 जनवरी को सम्बन्धों की शुरुआत करेंगे तो वह हमारी प्रेमपूर्ण, उत्साहपूर्ण, आत्मविश्वास से भरपूर शुरुआत होगी। ऐसी शुरुआत जिसमें न राग है, न द्वेष है, किसी दर्पण के समान हम सूरज के सामने खड़े होंगे कि वहाँ उसका प्रतिबिम्ब निर्मल बनेगा। अगर इस दर्पण को साफ न किया तो यह जन्म-जन्मान्तर तक क्रोध, ईर्ष्या, मोह, लोभ, राग-द्वेष पीछा करते रहेंगे और हम कीचड़ के कीड़े बनकर दुनिया में जीते रहेंगे ।
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क्षमा
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हमें तो मुक्ति का स्वर्ण-कमल बनना है । हमारे द्वारा राग का पोषण कम से कम हो सके इसलिए केवल 'मैं और मेरा परिवार' का ही पालन-पोषण न
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