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अवश्य गलत है। उदाहरण के तौर पर छाछ में से मक्खन पैदा होता है तो मक्खन छाछ के ऊपर-ऊपर रहता है। छाछ में मक्खन का रहना गलत नहीं है लेकिन मक्खन में छाछ रहना उसकी कमजोरी है । तब कहा जाएगा कि बिलोवन सही ढंग से नहीं हुआ। पानी में नाव का रहना अच्छी बात है, पर नाव में पानी का आ जाना दोषपूर्ण है। पानी में नाव रहेगी तो पानी से पार होने में मदद करेगी, पर अगर पानी नाव में आना शुरू हो जाएगा तो वही पानी उस नाव को ले डूबेगा।
पानी में यदि है किश्ती तो तिरेगी खूब ।
पर अगर किस्ती में है पानी तो जाएगी डूब ।। हम संसार में रहते तो बिल्कुल ऐसे ही हैं जैसे कि किश्ती पानी में रहा करती है। यदि हम संसार के भौतिक प्रपंच, संसार के रस-रंग, संसार की मोहमाया को अपने दिल में बसा लेंगे तो यही संसार हमारे डूबने का कारण बन जाएगा। कोई भी चीज़ तिरने और डूबने का, दोनों का साधन बन सकती है। यह इंसान के नज़रिये पर निर्भर करता है कि वह उस चीज़ का तिरने के लिए उपयोग करता है या डूबने के लिए। सीढ़ी से उतरोगे या चढ़ोगे, यह आपकी समझदारी पर निर्भर करता है।
पुरानी किताबें कहती हैं नारी नरक की खान है। जिन किताबों ने यह कहा उन्होंने केवल यह कहने की कोशिश की कि नारी नर को ले डूबती है, पर जिन नारियों ने अपने पुरुषों को ऊपर उठाने में मदद की है धर्मशास्त्रों को चाहिए कि उनके लिए यह भी कहने की कोशिश करें कि नारी स्वर्ग की पगडण्डी भी है। नारी व्यक्ति को गिराती है तो वह ऊपर भी उठाया करती है। जरा याद करें तुलसीदास को । उनको आगे बढ़ाने में किसकी भूमिका रही। नारी ने उनको गिराया कि ऊपर उठाया ? एक ही वस्तु होती है जो गिराती भी है, तिराती भी है और ऊपर भी उठाती है।
संसार में ऐसे ही रहो जैसे जल में कमल रहता है। इस संसार में रहें भले ही, पर संसार में उलझें नहीं, संसार के रंगों में आसक्त न हो जाएँ। संसार में न पत्नी बुरी है, न पति । बुरी अगर कोई चीज़ है तो वह है आसक्ति । आसक्ति बंधन है। अनासक्ति मुक्ति है। आसक्ति दुःख की जनक है, अनासक्ति सुख
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