Book Title: Mahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 332
________________ ही रह गए। उन्होंने जो समय बताया था उसके आधा घंटे बाद उन्हें हिलाया गया तो नीचे गिर गए। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो जाता है लेकिन जो अनासक्त होते हैं उन्हीं को पूर्वाभास होता है। जिसने अपना पूरा जीवन प्रभुभजन में बिताया होता है उन्हें अपने जीवन और मृत्यु की हर स्थिति का पता होता है। शेष तो मृत्यु से घबराते हैं और मृत्यु को निकट देखकर क्रन्दन करने लगते हैं। भगवान महावीर कहते हैं- व्यक्ति को इस तरह मृत्यु से डरकर, जीवन से चिपके हुए रहकर जीना अर्थहीन है। मृत्यु तो अवश्यंभावी है, जीवन से गुजरना अगर मुश्किल हो जाए तो गुजर जाना ही अच्छा है, जिंदगी भारभूत हो जाए तो मर जाना ही अच्छा है। जब तक जिएँ प्रेम से जिएँ, मर-मरकर जीना भी कोई जीना है ! अब तो ‘इच्छा-मृत्यु' का चलन होने वाला है कि जो व्यक्ति असाध्य बीमारी से ग्रस्त है या कोमा में है अथवा जीवन की कोई आशा ही न रही उन्हें इच्छा-मृत्यु की अनुमति मिल सकती है। क्या फ़र्क पड़ता है दस वर्ष बाद मृत्यु आए या आज ही चले जाएँ। जब तक स्वस्थ, आनन्द के साथ जीवन जिया जा सकता है तभी तक जीना चाहिए अन्यथा गुजर जाना ही अच्छा है। कबीर का पद है चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय । दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।। जीवन और मृत्यु के जो दो पाट हैं उनमें हम सभी पिस रहे हैं, बचता केवल वही है जो धुरी पर केन्द्रित हो गया है। अर्थात् परम सत्य, परमात्म-तत्त्व, आत्म-तत्त्व की धुरी के प्रति जो आकर्षित हो गया वह तो मुक्त हो जाता है, शेष तो सभी जन्म-मरण की धारा के साथ चलते रहते हैं। न जन्म अच्छा है, न मृत्यु अच्छी है, अच्छा तो इन दोनों से ऊपर उठ जाना है। मरना अच्छा नहीं है पर मुक्त हो जाना प्राणीमात्र का सौभाग्य है। भगवान महावीर कहते हैं - मनुष्य की मृत्यु दो तरह से होती है - एक है बालमरण, दूसरी है पंडितमरण। बालमरण का अर्थ है अज्ञानी की मृत्यु, पंडितमरण का अर्थ है ज्ञानी की मृत्यु। अज्ञानी की मृत्यु आसक्त व्यक्ति की मृत्यु है और ज्ञानी की मृत्यु अनासक्त व्यक्ति के द्वारा देह-विसर्जन है। अज्ञानी की तरह मरने ३२१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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