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महावीर सिद्ध हुए, सिद्ध तो और भी कई हुए, लेकिन तीर्थंकर का महत्त्व इसलिए है कि वे गुरु भी हैं। महावीर हमारे लिए गुरु और तीर्थंकर दोनों का काम कर गए। गुरु के सान्निध्य में बैठो। उनसे ज्ञान की बारह-खड़ी सीखो। जीवन के बारे में ज्ञान लो। उनसे जीवन की वर्णमाला सीखो। एक वर्णमाला तो प्राथमिक विद्यालयों में सीखी अब जीवन की वर्णमाला में सीखो कि 'अ' से अदब करो। 'आ' से आशीर्वाद लो, 'इ' से इबादत करो, 'ई' से ईमानदार बनो, 'उ' से उत्साह रखो, 'ऊ' से ऊर्जावान बनो, ‘ओ' से ओजस्वी बनो, 'औ' से औरों की सेवा करो- यह जीवन की वर्णमाला है। कक्षा का टीचर भी टीचर होता है और एक संत भी टीचर होता है पर दोनों के ज्ञान में फ़र्क होता है। कक्षा का टीचर 'अ' से अनार और 'आ' से आम सिखाता है। और ज्ञानी टीचर 'क' से कर्म करो, 'ख' से खरे बनो, 'ग' से गलती मत करो, 'घ' से घमंड मत करो, 'च' से चरित्रवान बनो, ‘छ' से छल मत करो, 'ज' से जलो मत, 'झ' से झगड़े मत करो, 'ट' से टकराओ मत, 'ठ' से ठगो मत, 'ड' से डरो मत, 'ढ' से ढलना सीखो, 'त' से तरक्की करो, 'थ' से थको मत, 'द' से दया करो, 'ध' से धर्म करो, 'न' से नरम बन जाओ, 'प' से परिश्रम करो, 'फ' से फर्ज निभाओ, 'ब' से बलवान बनो, ‘भ' से भलाई करो, 'म' से मस्त रहो, 'य' से यकीन करो, 'र' से रहम करो, 'ल' से लक्ष्य प्राप्त करो, ‘व' से वचन निभाओ, 'श' से शक मत करो/शर्म रखो, 'ष' से षड्यंत्र मत रचो, ‘स' से सफल बनो, 'क्ष' से क्षमा करना सीखो, 'त्र' से त्राहि मत मचाओ और 'ज्ञ' से ज्ञानी बनो सिखाता है।
'अ' से शुरू हुई वर्णमाला अदब से प्रारम्भ होती है और 'ज्ञ' से ज्ञानी होकर पूर्णता प्राप्त करती है। यह वर्णमाला सिखाती है कि जीवन का बुनियादी ज्ञान पाने के लिए दिव्य पुरुषों के, संतों के, निर्दोष पुरुषों के पास जाकर बैठो
और उनके ज्ञान का आनन्द लो। गुरु अगर मौन हैं तो मौन का भी आनन्द लो। बगीचे के फूल बातें नहीं किया करते, फिर भी वे हमारे मन को फूल की तरह खिला देते हैं। गुरु के पास बैठना फूलों भरी बगिया में बैठने के समान है। वहाँ मौन में भी संवाद होता है। कहते हैं श्रीकृष्णजी ने अर्जुन को गीता कही थी, संवाद किया था। जितनी बड़ी गीता आज मिलती है अगर उतनी बड़ी गीता
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