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उम्र की ही थी । पिताजी हर समय उसकी याद में रोते रहते, रात भर नींद नहीं
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आती, खाना खाते तो बेटी की याद आ जाती और वे खाना नहीं खा पाते । ऐसे ही दिन बीत रहे थे कि एक रात उन्होंने सपना देखा कि - एक परीलोक है, वहाँ नन्हीं-नन्हीं परियाँ उड़ रही हैं, इधर-उधर आ-जा रही हैं। हाथों में मशाल थामकर शोभायात्रा निकाल रही हैं। किसी के हाथ में मशाल है, किसी के हाथ में मोमबत्ती है। उन्हीं के बीच एक परी ऐसी थी जिसकी मशाल बुझी हुई थी । उस व्यक्ति ने परी को ध्यान से देखा और कहा बेटा, आपकी मोमबत्ती बुझी हुई क्यों है ? इतना सुनकर परी ने अपने भाल पर आए हुए बाल हटाए, वह व्यक्ति तुरंत पहचान गया कि अरे, यह कोई अन्य नहीं उसकी अपनी ही बेटी है। उसने फिर से अपना प्रश्न दोहराया। उस नन्हीं परी रूप बच्ची ने कहा - पिताजी, यहाँ मेरी सहेलियाँ रोजाना मेरी मोमबत्ती को जलाने का प्रयत्न करती हैं लेकिन वह हर बार बुझ जाती है। पिता ने पूछा- बेटा, बुझने का क्या कारण है ? परी ने कहा - पिताजी आप वहाँ नीचे आँसू ढुलकाते रहते हैं, जो सीधे मेरी मोमबत्ती पर आकर गिरते हैं और फिर चाहे जितनी बार मोमबत्ती जलाई जाए यह बुझ ही जाती है। पिता ने पूछा- बेटा, मुझे क्या करना चाहिए कि तुम्हारी मोमबत्ती हर समय जलती रहे। परी ने कहा- पापा, आप आँसू बहाने की बजाय हर समय खुश रहा करें, मेरी मोमबत्ती अपने-आप हर समय जलती रहेगी।
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तभी उस व्यक्ति की आँख खुल जाती है और उसे जीवन भर की सीख मिलती है कि अगर बेटी को सुख पहुँचाना है, उसे खुशी देनी है तो रोते रहने के बज़ाय खुश रहना चाहिए ताकि बेटी को भी खुशी मिल सके और उसकी मोमबत्ती हमेशा जली हुई रह सके ।
स्वर्ग और नरक दोनों आत्मा की ही अलग-अलग अवस्था है । जब हम आत्म-तत्त्व को स्वीकार करते हैं तब शेष सभी व्यवस्थाओं को स्वीकार करने के मार्ग और संभावनाएँ हमारे सामने उपस्थित होनी शुरू हो जाएँगी । अगर आत्म-तत्त्व को स्वीकार न किया तो आगे के सारे दरवाजे बंद हो जाएँगे । जब तक व्यक्ति उस चैतन्य को, जीवन धारण करने वाले तत्त्व को स्वीकार नहीं करेगा, उसके पुनर्जन्म को अस्वीकार करेगा तो कहाँ से देवलोक और मोक्ष होगा ? हम अपनी स्थूल आँखों के द्वारा स्थूल शरीर को ही देख सकते हैं लेकिन इस शरीर को धारण करने वाली चेतना को नहीं देख पाते । सूक्ष्म तत्त्व को, सूक्ष्म शरीर को
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