Book Title: Mahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 316
________________ महावीर का मार्ग जागरूकता का मार्ग है। साधक अपनी साधना के प्रति जागरूक हो, व्यापारी व्यापार के प्रति, भोजन बनाने वाले भोजन बनाने के प्रति, विद्यार्थी विद्यार्जन के प्रति जागरूक हो। हम सब अपने-अपने कार्य, कर्त्तव्य और लक्ष्य के प्रति जागरूक हों। जागरूक अप्रमत्त होकर ही हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। साधक अगर अपने लक्ष्य के प्रति जागरूक नहीं है तो वह साधना कैसे करेगा, आत्मभाव को कैसे सँजोकर रखेगा। साधक को तो दैनिक क्रियाकलाप करते हुए भी आत्म-जागरूक रहना चाहिए। स्वयं के कल्याण का भाव ही आत्म-भाव है। यह जानना कि मेरे भीतर जो चैतन्य-तत्त्व समाया हुआ है मेरी धारा उसके साथ जुड़ी रहे। मैं अपने-आप को न भूल जाऊँ, यही आत्म-भाव है। स्वयं को भूलकर व्यक्ति दुनिया में जी रहा है। स्वयं की स्मृति, स्वयं की सचेतनता आत्म-भाव है। स्व-भाव, चैतन्यभाव यही आत्म-भाव है। हमारे भीतर जीवन नामक जो अस्तित्व समाया है, प्राण-ऊर्जा समाई है उसे याद रखना ही सचेतनता, अवेयरनेस है । यही अवेयरनेस हमको आगे बढ़ाती है। विशेष रूप से जब हमें अहिंसा का पालन करना है तब बिना जागरूकता के अहिंसा का पालन कैसे होगा ? पानी छानकर पिया जा सकता है, रात्रि-भोजन भी न करेगा लेकिन किसी के दिल को ठेस न पहुँचे, हमारे द्वारा किसी की निंदा-आलोचना न हो जाए, यह तो जागरूकता से ही करना होगा। हम बेहोश अवस्था में मक्खी भी न उड़ाएँ, यह तभी संभव है जब अप्रमत्त और जागरूकता होगी, प्रज्ञाशीलता होगी। साधक स्वयं में तपस्वी होता है, आतापी होता है। तब वह किन तत्त्वों को जीता है - एक तो स्मृति को। वह सत्य के प्रति, निर्वाण के प्रति, अपनी आत्म-स्मृति को जोड़े रखता है इसलिए वह तपस्वी होता है। दूसरा, वह प्रज्ञाशील होता है - वह अपनी प्रज्ञा को, अपनी बुद्धि को निर्वाण तत्त्व के प्रति, सत्य की प्राप्ति के प्रति, आनन्द की प्राप्ति के प्रति सदा जागरूक रखता है । दया और करुणा को वही व्यक्ति जी सकता है जिसमें जागरूकता होगी, नहीं तो निमित्तों को पाकर भले ही दया और करुणा जी ले, पर स्वभावगत विशेषता न आ पाएगी। दुनिया के आलसियों के लिए भगवान का संदेश है कि अपने आलस्य का, प्रमाद का त्याग करो और अपने कर्त्तव्य-कर्म के प्रति दृढ़ श्रद्धा के ३०५ www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only

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