Book Title: Mahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 324
________________ मृत्यु सिखाता हूँ यह संसार का सत्य है कि जिसका जन्म होता है उसे मृत्यु का सामना अवश्य करना पड़ता है। जो लोग जिजिविषा से ग्रस्त होते हैं, जीवन के प्रति आसक्त होते हैं वे मृत्यु का नाम सुनने मात्र से कंपायमान हो जाते हैं लेकिन जो धैर्यपूर्वक नियति, प्रकृति और सृष्टि की व्यवस्था को समझ लेते हैं वे लोग मृत्यु का नाम सुनकर जीवन और जगत के प्रति और अधिक अनासक्त हो जाते हैं। प्रायः व्यक्ति जीना ही चाहता है और मृत्यु को मज़बूरी समझता है, लेकिन मृत्यु मज़बूरी नहीं है वरन् प्रकृति की ओर से प्रत्येक प्राणी की व्यवस्था है। जैसे घर के बुजुर्गों की, परिवार की व्यवस्था होती है वैसे ही जीवन और जगत की भी एक मर्यादा और व्यवस्था हुआ करती है। इसी के कारण मृत्यु स्वाभाविक रूप से आती है और जो मृत्यु के रहस्य से वाक़िफ़ हो जाते हैं वे सहज रूप में अपनी मृत्यु को स्वीकार कर लेते हैं। बेहतर होगा कि व्यक्ति कभी किसी नदी के तट पर, सरोवर के किनारे पर जाकर बैठे और वहाँ उठने वाली लहरों को देखे, उनको किनारे पर आकर मिटते हुए भी देखे। लहरों का उठना जन्म का और मिट जाना मृत्यु का प्रतीक हो जाएगा। कभी दीपक जलाकर उसकी लौ को देखने का प्रयत्न किया जाए तो उसे अहसास होगा कि दीपक तभी तक जलता है जब तक उसमें तेल रहता है। हमारा ३१३ www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only

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