Book Title: Mahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 319
________________ बहिन ! आप तो जबर्दस्त पतिव्रता हैं। तभी पीछे से उनके पति चले आए। उन्होंने कहा - गुरुजी !धूड़ की पतिव्रता है क्या ? आप नहीं जानते, सच्चाई तो यह है कि खाना मैं ही आकर बनाता हूँ। इस तरह का कोई भी बहाना लिया जा सकता है मुस्कुराने के लिए। मुस्कुराते ही चिंता, निद्रावस्था, आलस्य, प्रमाद दूर हो जाता है। मुस्कुराने की इतनी आदत हो कि हर समय मुस्कुराते रहें। एक बुद्ध-पुरुष हर समय मुस्कुराता है। कोई बुद्ध हो गया अर्थात् हँसता-खिलता गुलाब का फूल हो गया। गुलाब के फूल को चाहे मंदिर में चढ़ाओ या शव पर, डाली पर लगा हो या तोड़ लिया जाए वह मुस्कुराता ही रहेगा, जो इस तरह खिल जाए वही तो बुद्ध । जिसने यह निर्णय कर लिया कि वह हर हाल में मस्त रहेगा चाहे कोई मान दे कि अपमान वह मस्त ही रहेगा। किसी ने गाली दी उसकी मौज, किसी ने सम्मान दिया उसकी मौज। हम अपमानित तभी महसूस करेंगे जब किसी की गालियों को स्वीकार करेंगे। अगर कोई कुछ दे उसे सहजता से लेते हैं - न तो स्वीकार होता है और न ही अस्वीकार होता है तब मस्ती छाई रहेगी। आपने अगर मेरे पाँव छुए हैं तो मैं बड़ा नहीं हो गया। आपके अन्दर लघुता के भाव पनपे, आप में ऋजुता और सरलता का तत्त्व आया, आपके भीतर नमन का भाव आया इसलिए आप झुके । आदरणीय मैं नहीं, आपके नमन का भाव हो गया। इसमें आपका ही बड़प्पन है और अगर आप न झुके तो इसमें मुझे बुरा मानने की क्या बात है। रास्ते में कितने पेड़-पौधे मिलते हैं क्या वे झुकते हैं ? झुके तो ठीक न झुके तो भी ठीक। हमें इसे अच्छे रूप में लेना चाहिए कि यह व्यक्ति कितना अच्छा है जो संतजनों का भी सम्मान करता है, वह व्यक्ति आदरणीय है। मुझे तो जब भी कोई प्रणाम करता है तो मैं स्वयं को तटस्थ बना लेता हूँ और यही भावना करता हूँ कि ये प्रणाम प्रभु तक पहुँचे। जब कोई अस्सी वर्षीय बुजुर्ग प्रणाम करता है जो मुझे बहुत असहज लगता है, मैं हाथ जोड़ता हूँ और उसके प्रणाम प्रभु को समर्पित कर देता हूँ, ताकि हमारे अंदर अहंकार पोषित न हो। संत को तो विनम्र होना ही चाहिए। मुझे तो लगता है प्रणाम के बदले में प्रणाम ही लौटाना चाहिए । शुभकामना या आशीर्वाद तो हमारे प्रणाम के भाव में खुद ही छिपा है। .३०८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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