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गईं, अनगिनत महिलाओं के सिंदूर की होली खेली गई, अनगिनत माताओं की कोख उजड़ गई। आज आतंकवादी हम पर हमला कर रहे हैं, ज़वाब में हम हमला करेंगे, कुल मिलाकर दुनिया ही तहस-नहस हो रही है। हो सकता है ऐसा करने से एक लाख उग्रवादी मारे जाएँ पर आम जनता भी तो मारी जाएगी जिसका आतंकवाद और उग्रवाद से कोई लेना-देना ही नहीं है। इसीलिए झटपट बंदूकें नहीं उठाई जा रही हैं। अगर बंदूकें ही समाधान होतीं तो भारत
और पाकिस्तान में से एक ही देश बचता। जबकि सच्चाई यह है कि अगर बंदूकें उठीं तो न भारत रहेगा और न ही पाकिस्तान बचेगा। तब चारों ओर केवल श्मशान रह जाएंगे, ज़मीनें रह जाएँगी, इन पर हल चलाने वाले लोग नहीं बचेंगे। इन पर प्रेम के गीत गाने वाली चिड़ियाएँ नहीं बचेंगी, शांति के दूत कबूतर नहीं मिलेंगे। फिर क्या बचेगा ? चारों ओर त्राहि-त्राहि ही बचेगी। क्या दोनों देश एक दूसरे पर युद्ध नहीं थोप सकते ? थोप सकते हैं लेकिन नहीं थोपेंगे, क्योंकि इससे दोनों का ही नुकसान है। तभी तो रावण के घर में मंदोदरी भी अंतिम क्षण तक रावण को समझाती रहती है कि अगर तुम जीत भी गए तो इस जीत का जश्न मनाने वाला कौन बचेगा ? तुम अपने सारे पुत्रों को आहूत कर चुके होगे तब इस जीत का जश्न कौन मनाएगा ? मेघनाद, इन्द्रजीत, अक्षय, कुम्भकर्ण जब सब ही युद्ध की भेंट चढ़ चुके होंगे तो जीत का गीत कौन गाएगा ? इसलिए अंतिम दिन तक उसे यही समझाया जाता है पर जब आदमी का अहंकार किसी की सुनने को तैयार ही न होगा तो वह लड़ेगा और अंत में मौत ही आएगी। यह बात अलग है कि मरते समय उसे अहसास हो गया था कि राम साधारण इन्सान नहीं कुछ विशेष हैं। कहते हैं कि रावण, जिसने सीता का हरण किया था, उसकी सद्गति हो गई। रावण के पुतले तो प्रतीकात्मक रूप में जलाए जाते हैं कि कुछ उसने वह किया जो नैतिकता के विरुद्ध था अन्यथा रावण की तो मरते समय ही सद्गति हो गई। उसने अपने अंतिम क्षण में पहचान लिया था कि जिसके द्वारा मैं मारा जा रहा हूँ वह तो ईश्वर का अवतार है, भगवान का ही दिव्य स्वरूप प्रगट हुआ है। तभी तो वह ‘जय श्रीराम' का स्मरण करते हुए अपनी नश्वर देह का त्याग करता है।
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