Book Title: Mahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 310
________________ जीवन में क्रांति आ जाती है। उनकी चेतना रूपान्तरित होने लगती है। हम सभी देखते हैं कि किसी का जन्म होता है, किसी के शरीर में रोग पनपता है, किसी को बुढ़ापा आता है और हर घर के आगे से कोई-न-कोई अर्थी ज़रूर गुज़रती है। सामान्य नज़र से देखने पर न जन्म हमें वैराग्य देता है, न किसी का रोग, न बुढ़ापा और न ही अर्थी/मृत्यु। लेकिन आत्म-जागृत होकर देखने पर यही सामान्य-सी दिखने वाली घटनाएँ हमारे लिए असामान्य-असाधारण परिणाम दे जाती हैं। सामान्य नज़र से देखें तो हर सास-बहू, पति-पत्नी के बीच कुछ घटनाएँ घट जाती हैं लेकिन भर्तृहरि जैसे लोग जाग जाते हैं। भर्तृहरि के सामने एक सौदागर आया और एक फल देते हुए कहा - यह ऐसा अमृत फल है कि जो भी इसका उपभोग करेगा अगर वह बूढ़ा है तो जवान हो जाएगा, कुरूप है तो सुन्दर हो जाएगा। ऐसी स्थिति में व्यक्ति दो ही काम करेगा या तो स्वयं उपभोग करेगा या जिसे बहुत प्रेम करता है उसे समर्पित कर देगा। राजा भर्तृहरि ने भी दूसरा विकल्प चुना जिसे वह अत्यधिक प्रेम करता था वह थी उसकी अपनी रानी। उसने रानी को फल भेंट कर दिया। रानी महावत से प्रेम करती थी उसने फल महावत को दे दिया। महावत किसी गणिका के प्रेम में था उसने वह फल गणिका को दे दिया। गणिका जब फल की महिमा सुनती है तो उसे मन में आता है कि मैं पापिनी, जिसने जीवन भर पाप ही किए अगर मैं पुनः सुन्दर और युवा हो जाऊँगी तो और अधिक पाप ढोने पड़ेंगे, उन्हीं पापों को दोहराना पड़ेगा। मैं इस फल को खाऊँ इसके बजाय अपने धर्मप्रिय, न्यायप्रिय राजा को क्यों न समर्पित कर दूं। इस तरह वह फल लौटकर राजा के पास आ जाता है। तब राजा उस फल को देखकर चौंक पड़ता है और सारी घटना की छानबीन करता है तो उसका निष्कर्ष निकलता है - ओह ! मैं जिसके लिए रात-दिन चिंतन करता था, जिस पर मैं इतना प्रेम लुटाता था, मुझे क्या पता वह मुझसे इतनी विरक्त है। सामान्यसी दिखने वाली घटनाएँ व्यक्ति को जगा देती हैं और कुछ ऐसे होते हैं जो कितनी ही भयंकर घटना घट जाए तब भी कोई परिवर्तन नहीं आ पाता । यूँ तो हर पत्नी अपने पति को झिड़कती ही होगी लेकिन जब रत्नावली ने Jain Education International ०२२ www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only

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